गद्यांश MCQ Quiz - Objective Question with Answer for गद्यांश - Download Free PDF

Last updated on Jul 2, 2025

Latest गद्यांश MCQ Objective Questions

गद्यांश Question 1:

Comprehension:

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लीखिए।

परिश्रम का वही कमाल हैं। इतिहास में यह कमाल बार बार भिन्न भिन्न रूपों में देखा हैं। चन्द्रगुप्त हो या चाणक्य, सिकंदर हो या नेपोलियन, डिजरायली हो या लिंकन, सतलिज हो या खुशचेन, शंकराचार्य हो या खण्डन मिश्र, नेहरू हो या लालबहादुर शास्त्री सभी का जीवन परिश्रम और अध्यवसाय की रोमांचक कथा हैं। तालियों की गड़गड़ाहट के बिच वे संकुचित होकर बैठ गए। पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। एकांत जंगल में, झाड़ियो और पेड़ों के सामने वे बोलने कर अभ्यास करते रहे। पुरे एक वर्ष बाद जब ये फिर से ब्रिटिश संसद में बोलने खड़े हुए तो उनके धरा-प्रबाह भाषण से सांसदों की साँस रुक गई। वर्षो से उन्होंने ऐसा ओजस्वी और प्रभावपूर्ण भाषण नहीं सुना था। वह चमत्कार परिश्रम का ही परिणाम था।

कहते हैं महान कार-निर्माता उद्योगपति 'फोर्ड' एक साधारण टेक्नीशियन ये, खुशचेन खान मजदूर थे, टाटा, बिरला, मोदी आदि हमारे भारतीय उद्योगपति भी आरंभ में सामान्य-साधारण थे, किंतु निरंतर अटूट परिश्रम ने उन्हें सफलता और सम्पनता के आकाश पर चढ़ दिया। कहने का तात्पर्य यह हैं की जहाँ-जहाँ, जिस जिस क्षेत्र में भी आप सफलता और उत्कर्ष के चमत्कार पाएँगे, उनके पीछे अटूट परिश्रम और लगन की ही कहानी होगी।

विद्याथियों के लिए परिश्रम का विशेष महत्त्व हैं। विद्यार्थी कल साधना कल हैं। यही वह समय हैं जब विद्यार्थी को केवल अपने अध्यनन - मनन और शारीरिक स्वास्थ बनाने के अतिरिक्त और कुछ भी करना नहीं होता उसका एकमात्र ध्यान अपने शारीरिक-मानसिक विकास को समृद्ध करने की ओर रहता हैं। खाने-पिने, पहनने-ओढ़ने अथवा पढाई-लिखाई के खर्चे आदि की उन्हें कोई चिंता नहीं होती । ऐसी स्थिति में भी यदि वे परिश्रम से जी चुराए तो उनका दुर्भाग्य हैं; क्योकि कहा गया हैं-

'सुखार्थिनो कुतो विद्या, विद्यार्थिनो कुतो सुखम' ।

अर्थात सुख चाहने वाले के लिए विद्या कहाँ और विद्या की इच्छा रखने वाले को सुख कहाँ ? परिश्रमी व्यक्ति को अपनी दृष्टि केवल अपने उदेश्य बिंदु पर गड़ाए आगे बढ़ना चाहिए । परिश्रम एक शक्ति हैं। जिसने भी यह शक्ति प्राप्त कर ली सफलता ने उसके गले में जयमाल डाल दी। परिश्रम के बल पर ही व्यक्ति असंभव की संभव कर दिखता हैं। परिश्रम से ही उसने कोयले से हीरे का निर्माण किया, परिश्रम से ही उसने प्रकृति पर अपना अधिकार दिया।

परिश्रम जीवन की मूल शक्ति, उन्नति और सफलता का रहस्य हैं।

गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक होगा:

  1. परिश्रम का महत्व
  2. टाटा और उदयोग
  3. छात्रों की सफलता
  4. परिश्रम की देन

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : परिश्रम का महत्व

गद्यांश Question 1 Detailed Solution

गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक होगा: परिश्रम का महत्व

Key Points

  • गद्यांश के अनुसार -
    • विद्याथियों के लिए परिश्रम का विशेष महत्त्व हैं। विद्यार्थी कल साधना कल हैं।
    • यही वह समय हैं जब विद्यार्थी को केवल अपने अध्यनन - मनन और शारीरिक स्वास्थ बनाने के अतिरिक्त और कुछ भी करना नहीं होता
    • उसका एकमात्र ध्यान अपने शारीरिक-मानसिक विकास को समृद्ध करने की ओर रहता हैं। 

Additional Information 
 

 
अन्य विकल्प -

  • टाटा और उदयोग - इस गद्यांश में टाटा और उद्योग के बारे में कोई चर्चा नहीं है।
  • छात्रों की सफलता - यह विकल्प संबंधित है, लेकिन गद्यांश में परिश्रम के महत्व पर अधिक जोर दिया गया है।
  • परिश्रम की देन - यह विकल्प भी समीप है, लेकिन "परिश्रम का महत्व" इस गद्यांश के लिए अधिक उपयुक्त शीर्षक लगता है, क्योंकि गद्यांश में परिश्रम के महत्व को प्राथमिकता दी गई है।

गद्यांश Question 2:

Comprehension:

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लीखिए।

परिश्रम का वही कमाल हैं। इतिहास में यह कमाल बार बार भिन्न भिन्न रूपों में देखा हैं। चन्द्रगुप्त हो या चाणक्य, सिकंदर हो या नेपोलियन, डिजरायली हो या लिंकन, सतलिज हो या खुशचेन, शंकराचार्य हो या खण्डन मिश्र, नेहरू हो या लालबहादुर शास्त्री सभी का जीवन परिश्रम और अध्यवसाय की रोमांचक कथा हैं। तालियों की गड़गड़ाहट के बिच वे संकुचित होकर बैठ गए। पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। एकांत जंगल में, झाड़ियो और पेड़ों के सामने वे बोलने कर अभ्यास करते रहे। पुरे एक वर्ष बाद जब ये फिर से ब्रिटिश संसद में बोलने खड़े हुए तो उनके धरा-प्रबाह भाषण से सांसदों की साँस रुक गई। वर्षो से उन्होंने ऐसा ओजस्वी और प्रभावपूर्ण भाषण नहीं सुना था। वह चमत्कार परिश्रम का ही परिणाम था।

कहते हैं महान कार-निर्माता उद्योगपति 'फोर्ड' एक साधारण टेक्नीशियन ये, खुशचेन खान मजदूर थे, टाटा, बिरला, मोदी आदि हमारे भारतीय उद्योगपति भी आरंभ में सामान्य-साधारण थे, किंतु निरंतर अटूट परिश्रम ने उन्हें सफलता और सम्पनता के आकाश पर चढ़ दिया। कहने का तात्पर्य यह हैं की जहाँ-जहाँ, जिस जिस क्षेत्र में भी आप सफलता और उत्कर्ष के चमत्कार पाएँगे, उनके पीछे अटूट परिश्रम और लगन की ही कहानी होगी।

विद्याथियों के लिए परिश्रम का विशेष महत्त्व हैं। विद्यार्थी कल साधना कल हैं। यही वह समय हैं जब विद्यार्थी को केवल अपने अध्यनन - मनन और शारीरिक स्वास्थ बनाने के अतिरिक्त और कुछ भी करना नहीं होता उसका एकमात्र ध्यान अपने शारीरिक-मानसिक विकास को समृद्ध करने की ओर रहता हैं। खाने-पिने, पहनने-ओढ़ने अथवा पढाई-लिखाई के खर्चे आदि की उन्हें कोई चिंता नहीं होती । ऐसी स्थिति में भी यदि वे परिश्रम से जी चुराए तो उनका दुर्भाग्य हैं; क्योकि कहा गया हैं-

'सुखार्थिनो कुतो विद्या, विद्यार्थिनो कुतो सुखम' ।

अर्थात सुख चाहने वाले के लिए विद्या कहाँ और विद्या की इच्छा रखने वाले को सुख कहाँ ? परिश्रमी व्यक्ति को अपनी दृष्टि केवल अपने उदेश्य बिंदु पर गड़ाए आगे बढ़ना चाहिए । परिश्रम एक शक्ति हैं। जिसने भी यह शक्ति प्राप्त कर ली सफलता ने उसके गले में जयमाल डाल दी। परिश्रम के बल पर ही व्यक्ति असंभव की संभव कर दिखता हैं। परिश्रम से ही उसने कोयले से हीरे का निर्माण किया, परिश्रम से ही उसने प्रकृति पर अपना अधिकार दिया।

परिश्रम जीवन की मूल शक्ति, उन्नति और सफलता का रहस्य हैं।

परिश्रम व्यक्ति को नहीं देता:

  1. सफलता
  2. सम्पनता
  3. उत्कर्ष
  4. आत्मग्लानि

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : आत्मग्लानि

गद्यांश Question 2 Detailed Solution

परिश्रम व्यक्ति को नहीं देता: आत्मग्लानि

Key Points

  • गद्यांश के अनुसार -
    • किंतु निरंतर अटूट परिश्रम ने उन्हें सफलता और सम्पनता के आकाश पर चढ़ दिया।
    • कहने का तात्पर्य यह हैं की जहाँ-जहाँ, जिस जिस क्षेत्र में भी आप सफलता और उत्कर्ष के चमत्कार पाएँगे,
    • उनके पीछे अटूट परिश्रम और लगन की ही कहानी होगी।

Additional Information 
 
अन्य विकल्प -

  • आत्मग्लानि - गद्यांश के मुख्य बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए, यह स्पष्ट है कि परिश्रम व्यक्ति को आत्मग्लानि नहीं देता।
    • इसके विपरीत, परिश्रम व्यक्ति को सफलता, उत्कर्ष और संपन्नता प्रदान करता है।

गद्यांश Question 3:

Comprehension:

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लीखिए।

परिश्रम का वही कमाल हैं। इतिहास में यह कमाल बार बार भिन्न भिन्न रूपों में देखा हैं। चन्द्रगुप्त हो या चाणक्य, सिकंदर हो या नेपोलियन, डिजरायली हो या लिंकन, सतलिज हो या खुशचेन, शंकराचार्य हो या खण्डन मिश्र, नेहरू हो या लालबहादुर शास्त्री सभी का जीवन परिश्रम और अध्यवसाय की रोमांचक कथा हैं। तालियों की गड़गड़ाहट के बिच वे संकुचित होकर बैठ गए। पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। एकांत जंगल में, झाड़ियो और पेड़ों के सामने वे बोलने कर अभ्यास करते रहे। पुरे एक वर्ष बाद जब ये फिर से ब्रिटिश संसद में बोलने खड़े हुए तो उनके धरा-प्रबाह भाषण से सांसदों की साँस रुक गई। वर्षो से उन्होंने ऐसा ओजस्वी और प्रभावपूर्ण भाषण नहीं सुना था। वह चमत्कार परिश्रम का ही परिणाम था।

कहते हैं महान कार-निर्माता उद्योगपति 'फोर्ड' एक साधारण टेक्नीशियन ये, खुशचेन खान मजदूर थे, टाटा, बिरला, मोदी आदि हमारे भारतीय उद्योगपति भी आरंभ में सामान्य-साधारण थे, किंतु निरंतर अटूट परिश्रम ने उन्हें सफलता और सम्पनता के आकाश पर चढ़ दिया। कहने का तात्पर्य यह हैं की जहाँ-जहाँ, जिस जिस क्षेत्र में भी आप सफलता और उत्कर्ष के चमत्कार पाएँगे, उनके पीछे अटूट परिश्रम और लगन की ही कहानी होगी।

विद्याथियों के लिए परिश्रम का विशेष महत्त्व हैं। विद्यार्थी कल साधना कल हैं। यही वह समय हैं जब विद्यार्थी को केवल अपने अध्यनन - मनन और शारीरिक स्वास्थ बनाने के अतिरिक्त और कुछ भी करना नहीं होता उसका एकमात्र ध्यान अपने शारीरिक-मानसिक विकास को समृद्ध करने की ओर रहता हैं। खाने-पिने, पहनने-ओढ़ने अथवा पढाई-लिखाई के खर्चे आदि की उन्हें कोई चिंता नहीं होती । ऐसी स्थिति में भी यदि वे परिश्रम से जी चुराए तो उनका दुर्भाग्य हैं; क्योकि कहा गया हैं-

'सुखार्थिनो कुतो विद्या, विद्यार्थिनो कुतो सुखम' ।

अर्थात सुख चाहने वाले के लिए विद्या कहाँ और विद्या की इच्छा रखने वाले को सुख कहाँ ? परिश्रमी व्यक्ति को अपनी दृष्टि केवल अपने उदेश्य बिंदु पर गड़ाए आगे बढ़ना चाहिए । परिश्रम एक शक्ति हैं। जिसने भी यह शक्ति प्राप्त कर ली सफलता ने उसके गले में जयमाल डाल दी। परिश्रम के बल पर ही व्यक्ति असंभव की संभव कर दिखता हैं। परिश्रम से ही उसने कोयले से हीरे का निर्माण किया, परिश्रम से ही उसने प्रकृति पर अपना अधिकार दिया।

परिश्रम जीवन की मूल शक्ति, उन्नति और सफलता का रहस्य हैं।

निम्नलिखित में से मजदूर कौन बनेगा ?

  1. फोर्ड
  2. खुशचेन खान
  3. टाटा
  4. मोदी

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : खुशचेन खान

गद्यांश Question 3 Detailed Solution

मजदूर बनेगा - खुशचेन खान

Key Points

  • गद्यांश के अनुसार -
    • कहते हैं महान कार-निर्माता उद्योगपति 'फोर्ड' एक साधारण टेक्नीशियन ये,
    • खुशचेन खान मजदूर थे, टाटा, बिरला, मोदी आदि हमारे भारतीय उद्योगपति भी आरंभ में सामान्य-साधारण थे,
    • किंतु निरंतर अटूट परिश्रम ने उन्हें सफलता और सम्पनता के आकाश पर चढ़ दिया।

Additional Information अन्य विकल्प -

  • फोर्ड - फोर्ड एक साधारण टेक्नीशियन थे, मजदूर नहीं। वे महान कार-निर्माता उद्योगपति बने।
  • टाटा - टाटा भी आरंभ में सामान्य-साधारण थे, लेकिन मजदूर नहीं। उन्होंने परिश्रम से सफलता प्राप्त की।
  • मोदी - मोदी भी सामान्य-साधारण थे, लेकिन मजदूर नहीं। उनका भी रास्ता निरंतर परिश्रम के माध्यम से सफल हुआ।

गद्यांश Question 4:

Comprehension:

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लीखिए।

परिश्रम का वही कमाल हैं। इतिहास में यह कमाल बार बार भिन्न भिन्न रूपों में देखा हैं। चन्द्रगुप्त हो या चाणक्य, सिकंदर हो या नेपोलियन, डिजरायली हो या लिंकन, सतलिज हो या खुशचेन, शंकराचार्य हो या खण्डन मिश्र, नेहरू हो या लालबहादुर शास्त्री सभी का जीवन परिश्रम और अध्यवसाय की रोमांचक कथा हैं। तालियों की गड़गड़ाहट के बिच वे संकुचित होकर बैठ गए। पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। एकांत जंगल में, झाड़ियो और पेड़ों के सामने वे बोलने कर अभ्यास करते रहे। पुरे एक वर्ष बाद जब ये फिर से ब्रिटिश संसद में बोलने खड़े हुए तो उनके धरा-प्रबाह भाषण से सांसदों की साँस रुक गई। वर्षो से उन्होंने ऐसा ओजस्वी और प्रभावपूर्ण भाषण नहीं सुना था। वह चमत्कार परिश्रम का ही परिणाम था।

कहते हैं महान कार-निर्माता उद्योगपति 'फोर्ड' एक साधारण टेक्नीशियन ये, खुशचेन खान मजदूर थे, टाटा, बिरला, मोदी आदि हमारे भारतीय उद्योगपति भी आरंभ में सामान्य-साधारण थे, किंतु निरंतर अटूट परिश्रम ने उन्हें सफलता और सम्पनता के आकाश पर चढ़ दिया। कहने का तात्पर्य यह हैं की जहाँ-जहाँ, जिस जिस क्षेत्र में भी आप सफलता और उत्कर्ष के चमत्कार पाएँगे, उनके पीछे अटूट परिश्रम और लगन की ही कहानी होगी।

विद्याथियों के लिए परिश्रम का विशेष महत्त्व हैं। विद्यार्थी कल साधना कल हैं। यही वह समय हैं जब विद्यार्थी को केवल अपने अध्यनन - मनन और शारीरिक स्वास्थ बनाने के अतिरिक्त और कुछ भी करना नहीं होता उसका एकमात्र ध्यान अपने शारीरिक-मानसिक विकास को समृद्ध करने की ओर रहता हैं। खाने-पिने, पहनने-ओढ़ने अथवा पढाई-लिखाई के खर्चे आदि की उन्हें कोई चिंता नहीं होती । ऐसी स्थिति में भी यदि वे परिश्रम से जी चुराए तो उनका दुर्भाग्य हैं; क्योकि कहा गया हैं-

'सुखार्थिनो कुतो विद्या, विद्यार्थिनो कुतो सुखम' ।

अर्थात सुख चाहने वाले के लिए विद्या कहाँ और विद्या की इच्छा रखने वाले को सुख कहाँ ? परिश्रमी व्यक्ति को अपनी दृष्टि केवल अपने उदेश्य बिंदु पर गड़ाए आगे बढ़ना चाहिए । परिश्रम एक शक्ति हैं। जिसने भी यह शक्ति प्राप्त कर ली सफलता ने उसके गले में जयमाल डाल दी। परिश्रम के बल पर ही व्यक्ति असंभव की संभव कर दिखता हैं। परिश्रम से ही उसने कोयले से हीरे का निर्माण किया, परिश्रम से ही उसने प्रकृति पर अपना अधिकार दिया।

परिश्रम जीवन की मूल शक्ति, उन्नति और सफलता का रहस्य हैं।

सफलता के लिए विद्यार्थी को छोड़ना पड़ता है:

  1. सुख
  2. दुःख
  3. परिवार
  4. मित्र- बंधू

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : सुख

गद्यांश Question 4 Detailed Solution

सफलता के लिए विद्यार्थी को छोड़ना पड़ता है: सुख

Key Points

  • गद्यांश के अनुसार -
    • ऐसी स्थिति में भी यदि वे परिश्रम से जी चुराए तो उनका दुर्भाग्य हैं;
    • क्योकि कहा गया हैं- 'सुखार्थिनो कुतो विद्या, विद्यार्थिनो कुतो सुखम' ।
    • अर्थात सुख चाहने वाले के लिए विद्या कहाँ और विद्या की इच्छा रखने वाले को सुख कहाँ ?
    • परिश्रमी व्यक्ति को अपनी दृष्टि केवल अपने उदेश्य बिंदु पर गड़ाए आगे बढ़ना चाहिए । परिश्रम एक शक्ति हैं। 

Additional Informationअन्य विकल्प -

  • दुःख - सफलता पाने के लिए विद्यार्थी को दुःख छोड़ने की आवश्यकता नहीं है; बल्कि, दुःख और कठिनाईयाँ अक्सर सफलता की राह में आती हैं और उनका सामना करना पड़ता है।
  • परिवार - विद्यार्थी को अपने परिवार को छोड़ने की आवश्यकता नहीं होती है। परिवार अक्सर सहायता और प्रेरणा का स्रोत होता है।
  • मित्र-बंधू - मित्र और बंधु सहयोग और समर्थन प्रदान करते हैं। हालांकि, कभी-कभी अपने लक्ष्य पर ध्यान देने के लिए सामाजिक जीवन में कुछ कटौती करनी पड़ सकती है।

गद्यांश Question 5:

Comprehension:

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लीखिए।

परिश्रम का वही कमाल हैं। इतिहास में यह कमाल बार बार भिन्न भिन्न रूपों में देखा हैं। चन्द्रगुप्त हो या चाणक्य, सिकंदर हो या नेपोलियन, डिजरायली हो या लिंकन, सतलिज हो या खुशचेन, शंकराचार्य हो या खण्डन मिश्र, नेहरू हो या लालबहादुर शास्त्री सभी का जीवन परिश्रम और अध्यवसाय की रोमांचक कथा हैं। तालियों की गड़गड़ाहट के बिच वे संकुचित होकर बैठ गए। पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। एकांत जंगल में, झाड़ियो और पेड़ों के सामने वे बोलने कर अभ्यास करते रहे। पुरे एक वर्ष बाद जब ये फिर से ब्रिटिश संसद में बोलने खड़े हुए तो उनके धरा-प्रबाह भाषण से सांसदों की साँस रुक गई। वर्षो से उन्होंने ऐसा ओजस्वी और प्रभावपूर्ण भाषण नहीं सुना था। वह चमत्कार परिश्रम का ही परिणाम था।

कहते हैं महान कार-निर्माता उद्योगपति 'फोर्ड' एक साधारण टेक्नीशियन ये, खुशचेन खान मजदूर थे, टाटा, बिरला, मोदी आदि हमारे भारतीय उद्योगपति भी आरंभ में सामान्य-साधारण थे, किंतु निरंतर अटूट परिश्रम ने उन्हें सफलता और सम्पनता के आकाश पर चढ़ दिया। कहने का तात्पर्य यह हैं की जहाँ-जहाँ, जिस जिस क्षेत्र में भी आप सफलता और उत्कर्ष के चमत्कार पाएँगे, उनके पीछे अटूट परिश्रम और लगन की ही कहानी होगी।

विद्याथियों के लिए परिश्रम का विशेष महत्त्व हैं। विद्यार्थी कल साधना कल हैं। यही वह समय हैं जब विद्यार्थी को केवल अपने अध्यनन - मनन और शारीरिक स्वास्थ बनाने के अतिरिक्त और कुछ भी करना नहीं होता उसका एकमात्र ध्यान अपने शारीरिक-मानसिक विकास को समृद्ध करने की ओर रहता हैं। खाने-पिने, पहनने-ओढ़ने अथवा पढाई-लिखाई के खर्चे आदि की उन्हें कोई चिंता नहीं होती । ऐसी स्थिति में भी यदि वे परिश्रम से जी चुराए तो उनका दुर्भाग्य हैं; क्योकि कहा गया हैं-

'सुखार्थिनो कुतो विद्या, विद्यार्थिनो कुतो सुखम' ।

अर्थात सुख चाहने वाले के लिए विद्या कहाँ और विद्या की इच्छा रखने वाले को सुख कहाँ ? परिश्रमी व्यक्ति को अपनी दृष्टि केवल अपने उदेश्य बिंदु पर गड़ाए आगे बढ़ना चाहिए । परिश्रम एक शक्ति हैं। जिसने भी यह शक्ति प्राप्त कर ली सफलता ने उसके गले में जयमाल डाल दी। परिश्रम के बल पर ही व्यक्ति असंभव की संभव कर दिखता हैं। परिश्रम से ही उसने कोयले से हीरे का निर्माण किया, परिश्रम से ही उसने प्रकृति पर अपना अधिकार दिया।

परिश्रम जीवन की मूल शक्ति, उन्नति और सफलता का रहस्य हैं।

परिश्रम जीवन की मूल शक्ति, उन्नति और सफलता का रहस्य हैं। सफलता का आधार होता है:

  1. श्रम
  2. भाग्य
  3. विद्या
  4. शक्ति

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : श्रम

गद्यांश Question 5 Detailed Solution

परिश्रम जीवन की मूल शक्ति, उन्नति और सफलता का रहस्य हैं। सफलता का आधार होता है: श्रम

Key Points

  • गद्यांश के अनुसार -
    • टाटा, बिरला, मोदी आदि हमारे भारतीय उद्योगपति भी आरंभ में सामान्य-साधारण थे,
    • किंतु निरंतर अटूट परिश्रम ने उन्हें सफलता और सम्पनता के आकाश पर चढ़ दिया।
    • कहने का तात्पर्य यह हैं की जहाँ-जहाँ, जिस जिस क्षेत्र में भी आप सफलता और उत्कर्ष के चमत्कार पाएँगे,
    • उनके पीछे अटूट परिश्रम और लगन की ही कहानी होगी।​

Additional Informationअन्य विकल्प -

  • भाग्य - 
    • भाग्य किस्मत या नसीब को दर्शाता है।
    • कुछ लोग सफलता को भाग्य से जोड़ते हैं, लेकिन गद्यांश ने भाग्य पर जोर नहीं दिया है।
  • विद्या -
    • विद्या का अर्थ है ज्ञान या शिक्षा।
    • हालांकि विद्या महत्वपूर्ण है, गद्यांश में सफलता का प्रमुख कारण अटूट परिश्रम बताया गया है।
  • शक्ति -
    • शक्ति ताकत या क्षमता को दर्शाती है।
    • बिना परिश्रम के शक्ति का उपयोग नहीं हो सकता, इसीलिए गद्यांश में शक्ति की बजाय परिश्रम को प्राथमिकता दी गई है।

 

Top गद्यांश MCQ Objective Questions

Comprehension:

Comprehension:
गद्यांश के आधार पर प्रश्न का उत्तर दें ।

गांधीजी ने दोनों को - प्रत्यक्ष को अप्रत्यक्ष से , दृश्य को अदृश्य से , बाह्य को अंतर से जोड़कर भारतीय अनुभव को पूरी समग्रता से जीने का प्रयास किया था । उन्होंने बाह्य को सिर्फ इसलिए नहीं नकारा , कि वह हमारे जीवन का सांसारिक पहलू है , न ही वे अदृश्य से सिर्फ इसलिए सम्मोहित हुए कि उसमें सब - कुछ शाश्वत और पवित्र है , बल्कि उन्होंने समूचे भारतीय यथार्थ को एक अखंडित सत्य की तरह स्वीकार किया । वह हमारे परोक्ष को प्रत्यक्ष से , हमारे विश्वास को व्यवहार में बदलना चाहते थे ताकि हम इतिहास में अपने गौरव और अपनी शर्तों पर जी सकें । वह अपने प्रयास में असफल नहीं हुए , हम ही उनकी संभावनाओं तक पहुँचने में असफल रहे , किन्तु जो विकल्प उन्होंने सुझाया था , वह आज भी उतना जीवित और गौरवपूर्ण है , जितना पहले था । वह भारतीय संस्कृति का स्वप्न है जिससे आज समूची मानव - जाति की नियति जुड़ी है । क्या समय रहते हम उसे चुनने का साहस जुटा पायेंगे ?

 'प्रत्यक्ष' शब्द में किस संधि का प्रयोग हुआ है ?

  1. वृद्धि स्वर संधि
  2.  गुण स्वर संधि
  3.  दीर्घ स्वर संधि
  4.  यण स्वर संधि

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 :  यण स्वर संधि

गद्यांश Question 6 Detailed Solution

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'प्रत्यक्ष' शब्द में संधि है - 'यण'

  • 'प्रत्यक्ष' शब्द का संधि विच्छेद - प्रति + अक्ष = प्रत्यक्ष (इ + अ = य)
    • प्रत्यक्ष - स्पष्ट दिखाई पड़नेवाला।
  • जब संधि करते समय (इ, ई) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘य‘ बन जाता है,
  • जब (उ, ऊ) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘व‘ बन जाता है ,
  • जब (ऋ) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘र‘ बन जाता है।

उदाहरण-

  • अति + अंत = अत्यंत (इ + अ = य)
  • अनु + आय = अन्वय (उ + अ= व)
  • पितृ + आदेश = पित्रादेश (ऋ + आ= रा)
Key Points

अयादि संधि:-

  • जब संधि करते समय ए , ऐ , ओ , औ के साथ कोई अन्य स्वर हो तो (ए का अय), (ऐ का आय), (ओ का अव), (औ का आव) बन जाता है। यही अयादि संधि कहलाती है।

उदाहरण-​

  • ने + अन = नयन (ए + अ = अय)
  • गै + अक = गायक (ऐ + अ = आय)
  • पो + अन = पवन (ओ + अ = अव)
  • पो + इत्र = पवित्र (ओ + इ = आव)

गुण संधि:-

  • जब संधि करते समय (अ, आ) के साथ (इ, ई) हो तो ‘ए‘ बनता है, जब (अ, आ) के साथ (उ, ऊ) हो तो ‘ओ‘ बनता है, जब (अ, आ) के साथ (ऋ) हो तो ‘अर‘ बनता है तो यह गुण संधि कहलाती है।

उदाहरण-​

  • देव + इन्द्र = देवन्द्र (अ + इ = ए)
  • चन्द्र + उदय= चन्द्रोदय (अ + उ = ओ)
  • महा + ऋषि = महर्षि ( + ऋ = अर्)

दीर्घ संधि:-

  • जब दो शब्दों की संधि करते समय (अ, आ) के साथ (अ, आ) हो तो ‘आ‘ बनता है, जब (इ, ई) के साथ (इ, ई) हो तो ‘ई‘ बनता है, जब (उ, ऊ) के साथ (उ, ऊ) हो तो ‘ऊ‘ बनता है।

उदाहरण-​

  • विद्या + अभ्यास = विद्याभ्यास (आ + अ = आ)
  • गिरि + ईश = गिरीश (इ + ई = ई)
  • भानु + उदय = भानूदय (उ + उ = ऊ)

Comprehension:

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लीखिए।

परिश्रम का वही कमाल हैं। इतिहास में यह कमाल बार बार भिन्न भिन्न रूपों में देखा हैं। चन्द्रगुप्त हो या चाणक्य, सिकंदर हो या नेपोलियन, डिजरायली हो या लिंकन, सतलिज हो या खुशचेन, शंकराचार्य हो या खण्डन मिश्र, नेहरू हो या लालबहादुर शास्त्री सभी का जीवन परिश्रम और अध्यवसाय की रोमांचक कथा हैं। तालियों की गड़गड़ाहट के बिच वे संकुचित होकर बैठ गए। पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। एकांत जंगल में, झाड़ियो और पेड़ों के सामने वे बोलने कर अभ्यास करते रहे। पुरे एक वर्ष बाद जब ये फिर से ब्रिटिश संसद में बोलने खड़े हुए तो उनके धरा-प्रबाह भाषण से सांसदों की साँस रुक गई। वर्षो से उन्होंने ऐसा ओजस्वी और प्रभावपूर्ण भाषण नहीं सुना था। वह चमत्कार परिश्रम का ही परिणाम था।

कहते हैं महान कार-निर्माता उद्योगपति 'फोर्ड' एक साधारण टेक्नीशियन ये, खुशचेन खान मजदूर थे, टाटा, बिरला, मोदी आदि हमारे भारतीय उद्योगपति भी आरंभ में सामान्य-साधारण थे, किंतु निरंतर अटूट परिश्रम ने उन्हें सफलता और सम्पनता के आकाश पर चढ़ दिया। कहने का तात्पर्य यह हैं की जहाँ-जहाँ, जिस जिस क्षेत्र में भी आप सफलता और उत्कर्ष के चमत्कार पाएँगे, उनके पीछे अटूट परिश्रम और लगन की ही कहानी होगी।

विद्याथियों के लिए परिश्रम का विशेष महत्त्व हैं। विद्यार्थी कल साधना कल हैं। यही वह समय हैं जब विद्यार्थी को केवल अपने अध्यनन - मनन और शारीरिक स्वास्थ बनाने के अतिरिक्त और कुछ भी करना नहीं होता उसका एकमात्र ध्यान अपने शारीरिक-मानसिक विकास को समृद्ध करने की ओर रहता हैं। खाने-पिने, पहनने-ओढ़ने अथवा पढाई-लिखाई के खर्चे आदि की उन्हें कोई चिंता नहीं होती । ऐसी स्थिति में भी यदि वे परिश्रम से जी चुराए तो उनका दुर्भाग्य हैं; क्योकि कहा गया हैं-

'सुखार्थिनो कुतो विद्या, विद्यार्थिनो कुतो सुखम' ।

अर्थात सुख चाहने वाले के लिए विद्या कहाँ और विद्या की इच्छा रखने वाले को सुख कहाँ ? परिश्रमी व्यक्ति को अपनी दृष्टि केवल अपने उदेश्य बिंदु पर गड़ाए आगे बढ़ना चाहिए । परिश्रम एक शक्ति हैं। जिसने भी यह शक्ति प्राप्त कर ली सफलता ने उसके गले में जयमाल डाल दी। परिश्रम के बल पर ही व्यक्ति असंभव की संभव कर दिखता हैं। परिश्रम से ही उसने कोयले से हीरे का निर्माण किया, परिश्रम से ही उसने प्रकृति पर अपना अधिकार दिया।

परिश्रम जीवन की मूल शक्ति, उन्नति और सफलता का रहस्य हैं।

गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक होगा:

  1. परिश्रम का महत्व
  2. टाटा और उदयोग
  3. छात्रों की सफलता
  4. परिश्रम की देन

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : परिश्रम का महत्व

गद्यांश Question 7 Detailed Solution

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गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक होगा: परिश्रम का महत्व

Key Points

  • गद्यांश के अनुसार -
    • विद्याथियों के लिए परिश्रम का विशेष महत्त्व हैं। विद्यार्थी कल साधना कल हैं।
    • यही वह समय हैं जब विद्यार्थी को केवल अपने अध्यनन - मनन और शारीरिक स्वास्थ बनाने के अतिरिक्त और कुछ भी करना नहीं होता
    • उसका एकमात्र ध्यान अपने शारीरिक-मानसिक विकास को समृद्ध करने की ओर रहता हैं। 

Additional Information 
 

 
अन्य विकल्प -

  • टाटा और उदयोग - इस गद्यांश में टाटा और उद्योग के बारे में कोई चर्चा नहीं है।
  • छात्रों की सफलता - यह विकल्प संबंधित है, लेकिन गद्यांश में परिश्रम के महत्व पर अधिक जोर दिया गया है।
  • परिश्रम की देन - यह विकल्प भी समीप है, लेकिन "परिश्रम का महत्व" इस गद्यांश के लिए अधिक उपयुक्त शीर्षक लगता है, क्योंकि गद्यांश में परिश्रम के महत्व को प्राथमिकता दी गई है।

Comprehension:

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लीखिए।

परिश्रम का वही कमाल हैं। इतिहास में यह कमाल बार बार भिन्न भिन्न रूपों में देखा हैं। चन्द्रगुप्त हो या चाणक्य, सिकंदर हो या नेपोलियन, डिजरायली हो या लिंकन, सतलिज हो या खुशचेन, शंकराचार्य हो या खण्डन मिश्र, नेहरू हो या लालबहादुर शास्त्री सभी का जीवन परिश्रम और अध्यवसाय की रोमांचक कथा हैं। तालियों की गड़गड़ाहट के बिच वे संकुचित होकर बैठ गए। पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। एकांत जंगल में, झाड़ियो और पेड़ों के सामने वे बोलने कर अभ्यास करते रहे। पुरे एक वर्ष बाद जब ये फिर से ब्रिटिश संसद में बोलने खड़े हुए तो उनके धरा-प्रबाह भाषण से सांसदों की साँस रुक गई। वर्षो से उन्होंने ऐसा ओजस्वी और प्रभावपूर्ण भाषण नहीं सुना था। वह चमत्कार परिश्रम का ही परिणाम था।

कहते हैं महान कार-निर्माता उद्योगपति 'फोर्ड' एक साधारण टेक्नीशियन ये, खुशचेन खान मजदूर थे, टाटा, बिरला, मोदी आदि हमारे भारतीय उद्योगपति भी आरंभ में सामान्य-साधारण थे, किंतु निरंतर अटूट परिश्रम ने उन्हें सफलता और सम्पनता के आकाश पर चढ़ दिया। कहने का तात्पर्य यह हैं की जहाँ-जहाँ, जिस जिस क्षेत्र में भी आप सफलता और उत्कर्ष के चमत्कार पाएँगे, उनके पीछे अटूट परिश्रम और लगन की ही कहानी होगी।

विद्याथियों के लिए परिश्रम का विशेष महत्त्व हैं। विद्यार्थी कल साधना कल हैं। यही वह समय हैं जब विद्यार्थी को केवल अपने अध्यनन - मनन और शारीरिक स्वास्थ बनाने के अतिरिक्त और कुछ भी करना नहीं होता उसका एकमात्र ध्यान अपने शारीरिक-मानसिक विकास को समृद्ध करने की ओर रहता हैं। खाने-पिने, पहनने-ओढ़ने अथवा पढाई-लिखाई के खर्चे आदि की उन्हें कोई चिंता नहीं होती । ऐसी स्थिति में भी यदि वे परिश्रम से जी चुराए तो उनका दुर्भाग्य हैं; क्योकि कहा गया हैं-

'सुखार्थिनो कुतो विद्या, विद्यार्थिनो कुतो सुखम' ।

अर्थात सुख चाहने वाले के लिए विद्या कहाँ और विद्या की इच्छा रखने वाले को सुख कहाँ ? परिश्रमी व्यक्ति को अपनी दृष्टि केवल अपने उदेश्य बिंदु पर गड़ाए आगे बढ़ना चाहिए । परिश्रम एक शक्ति हैं। जिसने भी यह शक्ति प्राप्त कर ली सफलता ने उसके गले में जयमाल डाल दी। परिश्रम के बल पर ही व्यक्ति असंभव की संभव कर दिखता हैं। परिश्रम से ही उसने कोयले से हीरे का निर्माण किया, परिश्रम से ही उसने प्रकृति पर अपना अधिकार दिया।

परिश्रम जीवन की मूल शक्ति, उन्नति और सफलता का रहस्य हैं।

परिश्रम व्यक्ति को नहीं देता:

  1. सफलता
  2. सम्पनता
  3. उत्कर्ष
  4. आत्मग्लानि

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : आत्मग्लानि

गद्यांश Question 8 Detailed Solution

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परिश्रम व्यक्ति को नहीं देता: आत्मग्लानि

Key Points

  • गद्यांश के अनुसार -
    • किंतु निरंतर अटूट परिश्रम ने उन्हें सफलता और सम्पनता के आकाश पर चढ़ दिया।
    • कहने का तात्पर्य यह हैं की जहाँ-जहाँ, जिस जिस क्षेत्र में भी आप सफलता और उत्कर्ष के चमत्कार पाएँगे,
    • उनके पीछे अटूट परिश्रम और लगन की ही कहानी होगी।

Additional Information 
 
अन्य विकल्प -

  • आत्मग्लानि - गद्यांश के मुख्य बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए, यह स्पष्ट है कि परिश्रम व्यक्ति को आत्मग्लानि नहीं देता।
    • इसके विपरीत, परिश्रम व्यक्ति को सफलता, उत्कर्ष और संपन्नता प्रदान करता है।

Comprehension:

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लीखिए।

परिश्रम का वही कमाल हैं। इतिहास में यह कमाल बार बार भिन्न भिन्न रूपों में देखा हैं। चन्द्रगुप्त हो या चाणक्य, सिकंदर हो या नेपोलियन, डिजरायली हो या लिंकन, सतलिज हो या खुशचेन, शंकराचार्य हो या खण्डन मिश्र, नेहरू हो या लालबहादुर शास्त्री सभी का जीवन परिश्रम और अध्यवसाय की रोमांचक कथा हैं। तालियों की गड़गड़ाहट के बिच वे संकुचित होकर बैठ गए। पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। एकांत जंगल में, झाड़ियो और पेड़ों के सामने वे बोलने कर अभ्यास करते रहे। पुरे एक वर्ष बाद जब ये फिर से ब्रिटिश संसद में बोलने खड़े हुए तो उनके धरा-प्रबाह भाषण से सांसदों की साँस रुक गई। वर्षो से उन्होंने ऐसा ओजस्वी और प्रभावपूर्ण भाषण नहीं सुना था। वह चमत्कार परिश्रम का ही परिणाम था।

कहते हैं महान कार-निर्माता उद्योगपति 'फोर्ड' एक साधारण टेक्नीशियन ये, खुशचेन खान मजदूर थे, टाटा, बिरला, मोदी आदि हमारे भारतीय उद्योगपति भी आरंभ में सामान्य-साधारण थे, किंतु निरंतर अटूट परिश्रम ने उन्हें सफलता और सम्पनता के आकाश पर चढ़ दिया। कहने का तात्पर्य यह हैं की जहाँ-जहाँ, जिस जिस क्षेत्र में भी आप सफलता और उत्कर्ष के चमत्कार पाएँगे, उनके पीछे अटूट परिश्रम और लगन की ही कहानी होगी।

विद्याथियों के लिए परिश्रम का विशेष महत्त्व हैं। विद्यार्थी कल साधना कल हैं। यही वह समय हैं जब विद्यार्थी को केवल अपने अध्यनन - मनन और शारीरिक स्वास्थ बनाने के अतिरिक्त और कुछ भी करना नहीं होता उसका एकमात्र ध्यान अपने शारीरिक-मानसिक विकास को समृद्ध करने की ओर रहता हैं। खाने-पिने, पहनने-ओढ़ने अथवा पढाई-लिखाई के खर्चे आदि की उन्हें कोई चिंता नहीं होती । ऐसी स्थिति में भी यदि वे परिश्रम से जी चुराए तो उनका दुर्भाग्य हैं; क्योकि कहा गया हैं-

'सुखार्थिनो कुतो विद्या, विद्यार्थिनो कुतो सुखम' ।

अर्थात सुख चाहने वाले के लिए विद्या कहाँ और विद्या की इच्छा रखने वाले को सुख कहाँ ? परिश्रमी व्यक्ति को अपनी दृष्टि केवल अपने उदेश्य बिंदु पर गड़ाए आगे बढ़ना चाहिए । परिश्रम एक शक्ति हैं। जिसने भी यह शक्ति प्राप्त कर ली सफलता ने उसके गले में जयमाल डाल दी। परिश्रम के बल पर ही व्यक्ति असंभव की संभव कर दिखता हैं। परिश्रम से ही उसने कोयले से हीरे का निर्माण किया, परिश्रम से ही उसने प्रकृति पर अपना अधिकार दिया।

परिश्रम जीवन की मूल शक्ति, उन्नति और सफलता का रहस्य हैं।

निम्नलिखित में से मजदूर कौन बनेगा ?

  1. फोर्ड
  2. खुशचेन खान
  3. टाटा
  4. मोदी

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : खुशचेन खान

गद्यांश Question 9 Detailed Solution

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मजदूर बनेगा - खुशचेन खान

Key Points

  • गद्यांश के अनुसार -
    • कहते हैं महान कार-निर्माता उद्योगपति 'फोर्ड' एक साधारण टेक्नीशियन ये,
    • खुशचेन खान मजदूर थे, टाटा, बिरला, मोदी आदि हमारे भारतीय उद्योगपति भी आरंभ में सामान्य-साधारण थे,
    • किंतु निरंतर अटूट परिश्रम ने उन्हें सफलता और सम्पनता के आकाश पर चढ़ दिया।

Additional Information अन्य विकल्प -

  • फोर्ड - फोर्ड एक साधारण टेक्नीशियन थे, मजदूर नहीं। वे महान कार-निर्माता उद्योगपति बने।
  • टाटा - टाटा भी आरंभ में सामान्य-साधारण थे, लेकिन मजदूर नहीं। उन्होंने परिश्रम से सफलता प्राप्त की।
  • मोदी - मोदी भी सामान्य-साधारण थे, लेकिन मजदूर नहीं। उनका भी रास्ता निरंतर परिश्रम के माध्यम से सफल हुआ।

Comprehension:

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लीखिए।

परिश्रम का वही कमाल हैं। इतिहास में यह कमाल बार बार भिन्न भिन्न रूपों में देखा हैं। चन्द्रगुप्त हो या चाणक्य, सिकंदर हो या नेपोलियन, डिजरायली हो या लिंकन, सतलिज हो या खुशचेन, शंकराचार्य हो या खण्डन मिश्र, नेहरू हो या लालबहादुर शास्त्री सभी का जीवन परिश्रम और अध्यवसाय की रोमांचक कथा हैं। तालियों की गड़गड़ाहट के बिच वे संकुचित होकर बैठ गए। पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। एकांत जंगल में, झाड़ियो और पेड़ों के सामने वे बोलने कर अभ्यास करते रहे। पुरे एक वर्ष बाद जब ये फिर से ब्रिटिश संसद में बोलने खड़े हुए तो उनके धरा-प्रबाह भाषण से सांसदों की साँस रुक गई। वर्षो से उन्होंने ऐसा ओजस्वी और प्रभावपूर्ण भाषण नहीं सुना था। वह चमत्कार परिश्रम का ही परिणाम था।

कहते हैं महान कार-निर्माता उद्योगपति 'फोर्ड' एक साधारण टेक्नीशियन ये, खुशचेन खान मजदूर थे, टाटा, बिरला, मोदी आदि हमारे भारतीय उद्योगपति भी आरंभ में सामान्य-साधारण थे, किंतु निरंतर अटूट परिश्रम ने उन्हें सफलता और सम्पनता के आकाश पर चढ़ दिया। कहने का तात्पर्य यह हैं की जहाँ-जहाँ, जिस जिस क्षेत्र में भी आप सफलता और उत्कर्ष के चमत्कार पाएँगे, उनके पीछे अटूट परिश्रम और लगन की ही कहानी होगी।

विद्याथियों के लिए परिश्रम का विशेष महत्त्व हैं। विद्यार्थी कल साधना कल हैं। यही वह समय हैं जब विद्यार्थी को केवल अपने अध्यनन - मनन और शारीरिक स्वास्थ बनाने के अतिरिक्त और कुछ भी करना नहीं होता उसका एकमात्र ध्यान अपने शारीरिक-मानसिक विकास को समृद्ध करने की ओर रहता हैं। खाने-पिने, पहनने-ओढ़ने अथवा पढाई-लिखाई के खर्चे आदि की उन्हें कोई चिंता नहीं होती । ऐसी स्थिति में भी यदि वे परिश्रम से जी चुराए तो उनका दुर्भाग्य हैं; क्योकि कहा गया हैं-

'सुखार्थिनो कुतो विद्या, विद्यार्थिनो कुतो सुखम' ।

अर्थात सुख चाहने वाले के लिए विद्या कहाँ और विद्या की इच्छा रखने वाले को सुख कहाँ ? परिश्रमी व्यक्ति को अपनी दृष्टि केवल अपने उदेश्य बिंदु पर गड़ाए आगे बढ़ना चाहिए । परिश्रम एक शक्ति हैं। जिसने भी यह शक्ति प्राप्त कर ली सफलता ने उसके गले में जयमाल डाल दी। परिश्रम के बल पर ही व्यक्ति असंभव की संभव कर दिखता हैं। परिश्रम से ही उसने कोयले से हीरे का निर्माण किया, परिश्रम से ही उसने प्रकृति पर अपना अधिकार दिया।

परिश्रम जीवन की मूल शक्ति, उन्नति और सफलता का रहस्य हैं।

सफलता के लिए विद्यार्थी को छोड़ना पड़ता है:

  1. सुख
  2. दुःख
  3. परिवार
  4. मित्र- बंधू

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : सुख

गद्यांश Question 10 Detailed Solution

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सफलता के लिए विद्यार्थी को छोड़ना पड़ता है: सुख

Key Points

  • गद्यांश के अनुसार -
    • ऐसी स्थिति में भी यदि वे परिश्रम से जी चुराए तो उनका दुर्भाग्य हैं;
    • क्योकि कहा गया हैं- 'सुखार्थिनो कुतो विद्या, विद्यार्थिनो कुतो सुखम' ।
    • अर्थात सुख चाहने वाले के लिए विद्या कहाँ और विद्या की इच्छा रखने वाले को सुख कहाँ ?
    • परिश्रमी व्यक्ति को अपनी दृष्टि केवल अपने उदेश्य बिंदु पर गड़ाए आगे बढ़ना चाहिए । परिश्रम एक शक्ति हैं। 

Additional Informationअन्य विकल्प -

  • दुःख - सफलता पाने के लिए विद्यार्थी को दुःख छोड़ने की आवश्यकता नहीं है; बल्कि, दुःख और कठिनाईयाँ अक्सर सफलता की राह में आती हैं और उनका सामना करना पड़ता है।
  • परिवार - विद्यार्थी को अपने परिवार को छोड़ने की आवश्यकता नहीं होती है। परिवार अक्सर सहायता और प्रेरणा का स्रोत होता है।
  • मित्र-बंधू - मित्र और बंधु सहयोग और समर्थन प्रदान करते हैं। हालांकि, कभी-कभी अपने लक्ष्य पर ध्यान देने के लिए सामाजिक जीवन में कुछ कटौती करनी पड़ सकती है।

Comprehension:

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लीखिए।

परिश्रम का वही कमाल हैं। इतिहास में यह कमाल बार बार भिन्न भिन्न रूपों में देखा हैं। चन्द्रगुप्त हो या चाणक्य, सिकंदर हो या नेपोलियन, डिजरायली हो या लिंकन, सतलिज हो या खुशचेन, शंकराचार्य हो या खण्डन मिश्र, नेहरू हो या लालबहादुर शास्त्री सभी का जीवन परिश्रम और अध्यवसाय की रोमांचक कथा हैं। तालियों की गड़गड़ाहट के बिच वे संकुचित होकर बैठ गए। पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। एकांत जंगल में, झाड़ियो और पेड़ों के सामने वे बोलने कर अभ्यास करते रहे। पुरे एक वर्ष बाद जब ये फिर से ब्रिटिश संसद में बोलने खड़े हुए तो उनके धरा-प्रबाह भाषण से सांसदों की साँस रुक गई। वर्षो से उन्होंने ऐसा ओजस्वी और प्रभावपूर्ण भाषण नहीं सुना था। वह चमत्कार परिश्रम का ही परिणाम था।

कहते हैं महान कार-निर्माता उद्योगपति 'फोर्ड' एक साधारण टेक्नीशियन ये, खुशचेन खान मजदूर थे, टाटा, बिरला, मोदी आदि हमारे भारतीय उद्योगपति भी आरंभ में सामान्य-साधारण थे, किंतु निरंतर अटूट परिश्रम ने उन्हें सफलता और सम्पनता के आकाश पर चढ़ दिया। कहने का तात्पर्य यह हैं की जहाँ-जहाँ, जिस जिस क्षेत्र में भी आप सफलता और उत्कर्ष के चमत्कार पाएँगे, उनके पीछे अटूट परिश्रम और लगन की ही कहानी होगी।

विद्याथियों के लिए परिश्रम का विशेष महत्त्व हैं। विद्यार्थी कल साधना कल हैं। यही वह समय हैं जब विद्यार्थी को केवल अपने अध्यनन - मनन और शारीरिक स्वास्थ बनाने के अतिरिक्त और कुछ भी करना नहीं होता उसका एकमात्र ध्यान अपने शारीरिक-मानसिक विकास को समृद्ध करने की ओर रहता हैं। खाने-पिने, पहनने-ओढ़ने अथवा पढाई-लिखाई के खर्चे आदि की उन्हें कोई चिंता नहीं होती । ऐसी स्थिति में भी यदि वे परिश्रम से जी चुराए तो उनका दुर्भाग्य हैं; क्योकि कहा गया हैं-

'सुखार्थिनो कुतो विद्या, विद्यार्थिनो कुतो सुखम' ।

अर्थात सुख चाहने वाले के लिए विद्या कहाँ और विद्या की इच्छा रखने वाले को सुख कहाँ ? परिश्रमी व्यक्ति को अपनी दृष्टि केवल अपने उदेश्य बिंदु पर गड़ाए आगे बढ़ना चाहिए । परिश्रम एक शक्ति हैं। जिसने भी यह शक्ति प्राप्त कर ली सफलता ने उसके गले में जयमाल डाल दी। परिश्रम के बल पर ही व्यक्ति असंभव की संभव कर दिखता हैं। परिश्रम से ही उसने कोयले से हीरे का निर्माण किया, परिश्रम से ही उसने प्रकृति पर अपना अधिकार दिया।

परिश्रम जीवन की मूल शक्ति, उन्नति और सफलता का रहस्य हैं।

परिश्रम जीवन की मूल शक्ति, उन्नति और सफलता का रहस्य हैं। सफलता का आधार होता है:

  1. श्रम
  2. भाग्य
  3. विद्या
  4. शक्ति

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : श्रम

गद्यांश Question 11 Detailed Solution

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परिश्रम जीवन की मूल शक्ति, उन्नति और सफलता का रहस्य हैं। सफलता का आधार होता है: श्रम

Key Points

  • गद्यांश के अनुसार -
    • टाटा, बिरला, मोदी आदि हमारे भारतीय उद्योगपति भी आरंभ में सामान्य-साधारण थे,
    • किंतु निरंतर अटूट परिश्रम ने उन्हें सफलता और सम्पनता के आकाश पर चढ़ दिया।
    • कहने का तात्पर्य यह हैं की जहाँ-जहाँ, जिस जिस क्षेत्र में भी आप सफलता और उत्कर्ष के चमत्कार पाएँगे,
    • उनके पीछे अटूट परिश्रम और लगन की ही कहानी होगी।​

Additional Informationअन्य विकल्प -

  • भाग्य - 
    • भाग्य किस्मत या नसीब को दर्शाता है।
    • कुछ लोग सफलता को भाग्य से जोड़ते हैं, लेकिन गद्यांश ने भाग्य पर जोर नहीं दिया है।
  • विद्या -
    • विद्या का अर्थ है ज्ञान या शिक्षा।
    • हालांकि विद्या महत्वपूर्ण है, गद्यांश में सफलता का प्रमुख कारण अटूट परिश्रम बताया गया है।
  • शक्ति -
    • शक्ति ताकत या क्षमता को दर्शाती है।
    • बिना परिश्रम के शक्ति का उपयोग नहीं हो सकता, इसीलिए गद्यांश में शक्ति की बजाय परिश्रम को प्राथमिकता दी गई है।

 

Comprehension:

आपको यह ध्यान में रखना चाहिए कि प्रारंभिक शिक्षा में सफाई, तन्दुरुस्ती, भोजनशास्त्र, अपना काम आप करने और घर पर माता-पिता को मदद देने वगैरह के मूल सिद्धान्त शामिल हों । मौजूदा पीढ़ी के लड़कों को स्वच्छता और स्वावलंबन का कोई ज्ञान नहीं होता और वे शरीर से कमजोर होते हैं । इसलिए मैं संगीतमय कवायद के जरिए उनको अनिवार्य शारीरिक तालीम दिला पाऊँगा ।

बच्चों के प्रारंभिक शिक्षा के मूल सिद्धान्त क्या नहीं है ?

  1. तन्दुरुस्ती
  2. संगीत
  3. सफाई
  4. भोजनशास्त्र

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : संगीत

गद्यांश Question 12 Detailed Solution

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बच्चों के प्रारंभिक शिक्षा के मूल सिद्धान्त नहीं है- संगीत

Key Points

  • गद्यांश के अनुसार -
    • आपको यह ध्यान में रखना चाहिए कि प्रारंभिक शिक्षा में सफाई, तन्दुरुस्ती, भोजनशास्त्र,
    • अपना काम आप करने और घर पर माता-पिता को मदद देने वगैरह के मूल सिद्धान्त शामिल हों । 

Additional Information 
 
अन्य विकल्प -

  • संगीत - गद्यांश के अनुसार, बच्चों के प्रारंभिक शिक्षा का एक मूल सिद्धान्त संगीत नहीं है। 

Comprehension:

आपको यह ध्यान में रखना चाहिए कि प्रारंभिक शिक्षा में सफाई, तन्दुरुस्ती, भोजनशास्त्र, अपना काम आप करने और घर पर माता-पिता को मदद देने वगैरह के मूल सिद्धान्त शामिल हों । मौजूदा पीढ़ी के लड़कों को स्वच्छता और स्वावलंबन का कोई ज्ञान नहीं होता और वे शरीर से कमजोर होते हैं । इसलिए मैं संगीतमय कवायद के जरिए उनको अनिवार्य शारीरिक तालीम दिला पाऊँगा ।

घर पर किसकी मदद की बात कही गयी है ?

  1. चाचा-चाची
  2. भाई-बहन
  3. पास-पड़ोस
  4. माता-पिता

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : माता-पिता

गद्यांश Question 13 Detailed Solution

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घर पर माता-पिता की मदद की बात कही गयी है

Key Points

  • गद्यांश के अनुसार -
    • आपको यह ध्यान में रखना चाहिए कि प्रारंभिक शिक्षा में सफाई, तन्दुरुस्ती, भोजनशास्त्र,
    • अपना काम आप करने और घर पर माता-पिता को मदद देने वगैरह के मूल सिद्धान्त शामिल हों । 

Additional Information अन्य विकल्प -

  • चाचा-चाची: बच्चों को अपने चाचा-चाची की भी मदद करनी सिखाई जा सकती है,
    • जिससे वे परिवार के सभी सदस्यों के साथ सहयोग करना और सामंजस्य बैठाना सीखें।
  • भाई-बहन: बच्चों को अपने भाई-बहनों की भी सहायता करनी चाहिए।
    • यह उन्हें पारिवारिक जिम्मेदारियों को साझा करना, सहयोग और टीमवर्क का महत्व समझने में मदद करेगा।
  • पास-पड़ोस: बच्चों को समाज एवं पड़ोसियों के प्रति भी जिम्मेदार बनाना महत्वपूर्ण है।
    • इससे वे अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों को समझ सकेंगे और समुदाय के प्रति सम्मान और सहयोग का भाव विकसित कर सकेंगे।

Comprehension:

आपको यह ध्यान में रखना चाहिए कि प्रारंभिक शिक्षा में सफाई, तन्दुरुस्ती, भोजनशास्त्र, अपना काम आप करने और घर पर माता-पिता को मदद देने वगैरह के मूल सिद्धान्त शामिल हों । मौजूदा पीढ़ी के लड़कों को स्वच्छता और स्वावलंबन का कोई ज्ञान नहीं होता और वे शरीर से कमजोर होते हैं । इसलिए मैं संगीतमय कवायद के जरिए उनको अनिवार्य शारीरिक तालीम दिला पाऊँगा ।

उपरोक्त गद्यांश में किस शिक्षा की बात कही गयी है ?

  1. अनिवार्य शिक्षा
  2. प्रौढ़ शिक्षा
  3. प्रारंभिक शिक्षा
  4. वयस्क शिक्षा

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : प्रारंभिक शिक्षा

गद्यांश Question 14 Detailed Solution

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उपरोक्त गद्यांश में प्रारंभिक शिक्षा की बात कही गयी है

Key Points

  • गद्यांश के अनुसार -
    • आपको यह ध्यान में रखना चाहिए कि प्रारंभिक शिक्षा में सफाई, तन्दुरुस्ती, भोजनशास्त्र,
    • अपना काम आप करने और घर पर माता-पिता को मदद देने वगैरह के मूल सिद्धान्त शामिल हों । 

Additional Information 
 
अन्य विकल्प -

  • अनिवार्य शिक्षा: अनिवार्य शिक्षा यह सुनिश्चित करती है कि सभी बच्चे एक निश्चित आयु तक न्यूनतम शैक्षणिक मानकों को पूरा करें।
    • इसमें आमतौर पर भाषा, गणित, विज्ञान, सामाजिक अध्ययन आदि विषयों को शामिल किया जाता है।
  • प्रौढ़ शिक्षा: प्रौढ़ शिक्षा का उद्देश्य वयस्कों को उन कौशलों और ज्ञान का शिक्षण देना होता है जो वे अपनी पिछली शिक्षा के दौरान नहीं सीख पाए थे।
    • इसमें व्यावसायिक प्रशिक्षण, निरक्षरता उन्मूलन और अन्य व्यावहारिक जीवन कौशल शामिल होते हैं।
  • वयस्क शिक्षा: वयस्क शिक्षा वयस्कों को नई जानकारी और कौशल सिखाने के लिए होती है, ताकि वे अपनी जिंदगी में सुधार कर सकें।
    • यह उन व्यक्तियों के लिए होती है जो अपनी शिक्षा को जारी रखना चाहते हैं या किसी नए क्षेत्रों में ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं।

Comprehension:

आपको यह ध्यान में रखना चाहिए कि प्रारंभिक शिक्षा में सफाई, तन्दुरुस्ती, भोजनशास्त्र, अपना काम आप करने और घर पर माता-पिता को मदद देने वगैरह के मूल सिद्धान्त शामिल हों । मौजूदा पीढ़ी के लड़कों को स्वच्छता और स्वावलंबन का कोई ज्ञान नहीं होता और वे शरीर से कमजोर होते हैं । इसलिए मैं संगीतमय कवायद के जरिए उनको अनिवार्य शारीरिक तालीम दिला पाऊँगा ।

किस अनिवार्य तालीम की बात गद्यांश में की जा रही है ?

  1. शारीरिक
  2. आध्यात्मिक
  3. मानसिक
  4. वैज्ञानिक

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : शारीरिक

गद्यांश Question 15 Detailed Solution

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शारीरिक अनिवार्य तालीम की बात गद्यांश में की जा रही है

Key Points

  • गद्यांश के अनुसार -
    • मौजूदा पीढ़ी के लड़कों को स्वच्छता और स्वावलंबन का कोई ज्ञान नहीं होता और वे शरीर से कमजोर होते हैं ।
    • इसलिए मैं संगीतमय कवायद के जरिए उनको अनिवार्य शारीरिक तालीम दिला पाऊँगा ।

Additional Information अन्य विकल्प -

 

  • आध्यात्मिक: आध्यात्मिक तालीम के द्वारा लड़कों को मानसिक शांति, आंतरिक बल और सकारात्मक दृष्टिकोण प्रदान किया जा सकता है।
    • यह उन्हें जीवन के प्रति अधिक संतुलित और जिम्मेदारीपूर्ण बना सकता है।
  • मानसिक: मानसिक तालीम के माध्यम से लड़कों को ज्ञान, तर्क, आत्मविश्लेषण और मानसिक स्ट्रेंथ विकसित करने की शिक्षा दी जा सकती है।
    • यह उन्हें निर्णय लेने और तनाव का सामना करने के लिए मजबूत बनाएगी।
  • वैज्ञानिक: वैज्ञानिक तालीम के जरिए लड़कों को वैज्ञानिक सोच, नवाचार और समस्या समाधान के कौशल सिखाए जा सकते हैं।
    • इससे वे स्वावलंबी और तार्किक दृष्टिकोण से मजबूत बन सकते हैं।
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