शब्द रचना MCQ Quiz - Objective Question with Answer for शब्द रचना - Download Free PDF

Last updated on Jun 19, 2025

Latest शब्द रचना MCQ Objective Questions

शब्द रचना Question 1:

'पञ्चगवम्’ पदस्य समासविग्रहं चिनुत- 

  1. पञ्च च ते गवम् च।
  2. पञ्चान् गवान्।
  3. पञ्चानां गवां समाहारः।
  4. उपर्युक्तेषु एकस्मात् अधिकम्
  5. उपर्युक्तेषु कश्चन अपि नास्ति

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : पञ्चानां गवां समाहारः।

शब्द रचना Question 1 Detailed Solution

प्रश्नानुवाद - 'पञ्चगवम्’ पद के समास विग्रह को चुने-

स्पष्टीकरणपञ्चगवम् पद का समास विग्रह - पञ्चानां गवां समाहारः है। यहाँ द्विगु समास हुआ है। जिसमें प्रथमपद संख्यावाची होता है।

शब्द - पञ्चगवम्

समास-विग्रह - पञ्चानां गवां समाहारः।

सूत्रसंख्यापूर्वो द्विगुः

नियम - जहाँ प्रथम पद संख्यावाची होता है और दूसरा पद संज्ञा शब्द होता है, वहाँ द्विगु समास होता है। यह तत्पुरुष समास का ही भेद है। उदाहरण

  • त्रयानां  भुवनानां समाहारः - त्रिभुवनम् 
  • चतुर्णां भुजानां समाहारः - चतुर्भुजम्
  • इसी तरह पञ्चगवम् - पञ्चानां गवां समाहारः (पाँच गायों का समूह)

 

अतः स्पष्ट है कि यहाँ पञ्चगवम् पद का समास विग्रह - पञ्चानां गवां समाहारः है।

समास के भेद

समसनं समासः अर्थात् संक्षिप्त होने को समास कहते हैं। समास एक संज्ञा है। दो या दो से अधिक शब्दों का जब समास होकर एक पद बनता है, तो उसे समास कहते हैं। समास में दो पद होते हैं - 1. पूर्व पद, 2. उत्तर पद
समास के मुख्यतः 4 भेद है। 

  1. अव्ययीभाव
  2. तत्पुरुष
  3. बहुव्रीहि
  4. द्वन्द्व

(1) अव्ययीभाव समास - ‘पूर्वपदार्थप्रधानोSव्ययीभावः’ अर्थात् जिस पद में पूर्व पद की प्रधानता हो या पद का आरम्भ किसी अव्यय पद से हो रहा हो, वहाँ अव्ययीभाव समास होता है। उदाहरण - 

  • रूपस्य योग्यम् - अनुरूपम्
  • रामस्य पश्चात् - अनुरामम्

(2) तत्पुरुष समास - ‘उत्तरपदप्रधानो तत्पुरुषः’ अर्थात जिस पद में उत्तर पद प्रधान होता है, वहाँ तत्पुरुष समास होता है।  उदाहरण - 

  • सुखम् आपन्नः - सुखापन्नः
  • कूपं पतितः - कूपपतितः

तत्पुरुष समास के मुख्यतः दो भेद होते हैं - 

  1. व्यधिकरण तत्पुरुष समास 
  2. समानाधिकरण तत्पुरुष

1. व्यधिकरण तत्पुरुष समास के सात (7) भेद होते हैं, जो निम्नलिखित हैं - 
द्वितीया तत्पुरुष - जहाँ श्रित, अतीत, पतित, गत, अत्यस्त, प्राप्त और आपन्न इन शब्दों का संयोग होता है, वहाँ द्वितीया तत्पुरुष समास होता है। उदाहरण -

  • शोकं पतितः - शोकपतितः

तृतीया तत्पुरुष - जहाँ तृतीयान्त शब्द के साथ पूर्व, सदृश, सम शब्द आता है, तो वहाँ तृतीया तत्पुरुष समास होता है।  उदाहरण - 

  • पित्रा समः - पितृसमः 

चतुर्थी तत्पुरुष - जहाँ पूर्व पद चतुर्थी विभक्ति में होता है अथवा बलि, हित, सुख, रक्षित इन शब्दों को संयोग होता है,  वहाँ चतुर्थी तत्पुरुष समास होता है। उदाहरण -

  • ब्राह्मणाय हितम् - ब्राह्मणहितम्

पञ्चमी तत्पुरुष - जहाँ भय, भीत, भीति इन शब्दों का संयोग होता है, वहाँ पञ्चमी तत्पुरुष समास होता है। उदाहरण - 

  • व्याघ्राद् भीतिः - व्याघ्रभीतिः

षष्ठी तत्पुरुष - जब पूर्व पद षष्ठी विभक्ति में होता है, तो वहाँ षष्ठी तत्पुरुष समास होता है। उदाहरण - 

  • देवानां भाषा - देवभाषा

सप्तमी तत्पुरुष - जब पूर्व पद सप्तमी विभक्ति में रहता है अथवा शौण्ड (चतुर), धूर्त, कितव (शठ), प्रवीण, कुशल, पण्डित इन शब्दों का संयोग होता है, तो वहाँ सप्तमी तत्पुरुष समास होता है। उदाहरण - 

  • सभायां पण्डितः - सभापण्डितः

नञ् तत्पुरुष - जब पूर्व पद न शब्द हो, तथा उत्तर पद कोई संज्ञा या विशेषण हो तो, वहाँ नञ् तत्पुरुष समास होता है। उदाहरण - 

  • न कृतम् - अकृतम्

2. समानाधिकरण तत्पुरुष समास के दो भेद होते हैं - 

  • कर्मधारय तत्पुरुष समास
  • द्विगु तत्पुरुष समास

(1) कर्मधारय तत्पुरुष समास - ऐसा तत्पुरुष समास जहाँ विशेषण-विशेष्य और उपमान-उपमेय का सम्बन्ध होता है, वह कर्मधारय समास होता है। उदाहरण- 

  • पीतम् उत्पलम् - पीतोत्पलम्
  • घन इव श्यामः - घनश्यामः

(2) द्विगु तत्पुरुष समास - जहाँ प्रथम पद संख्यावाची होता है, वहाँ द्विगु समास होता है। यह तत्पुरुष समास का ही भेद है। उदाहरण - 

  • त्रयानां  भुवनानां समाहारः - त्रिभुवनम् 
  • चतुर्णां भुजानां समाहारः - चतुर्भुजम्

(3) बहुव्रीहि समास - ‘अन्यपदार्थप्रधानो बहुव्रीहिः’ जहाँ दो या दो से अधिक समस्त शब्द किसी अन्य पद को इंगित करते हैं, वहाँ बहुव्रीहि समास होता है। उदाहरण - 

  • महान् आत्मा यस्य सः (बुद्धः) - महात्मा
  • दश आननानि यस्य सः (रावणः) - दशाननः

बहुव्रीहि समास के दो भेद हैं-

  1. समानाधिकरण बहुव्रीहि- (जहाँ दोनों शब्द प्रथमान्त होते हैं। जैसे - पीतम् अम्बरम् यस्य सः)
  2. व्यधिकरण बहुव्रीहि - (जहाँ दोनों शब्द प्रथमान्त नहीं होते हैं। एक प्रथमान्त होता है और दूसरा शब्द षष्ठी या सप्तमी विभक्ति में होता है। जैसे - चन्द्र शेखरे यस्य सः)

(4) द्वन्द्व समास - ‘उभयपदार्थप्रधानो द्वन्द्वः’ जहाँ दोनों पद (पूर्व पद एवं उत्तर पद) प्रधान होते हैं, वहाँ द्वन्द्व समास होता है। उदाहरण -

  • रामश्च लक्ष्मणश्च भरतश्च - रामलक्ष्मणभरताः
  • पाणी च पादौ च - पाणिपादम्

 

शब्द रचना Question 2:

'लम्बकर्णः' पदस्य समासविग्रहः भवति-

  1. लम्बः चासौ कर्णः च।
  2. लम्बौ कर्णौ यस्य सः।
  3. लम्बः कर्ण: यस्य सः।
  4. उपर्युक्तेषु एकस्मात् अधिकम्
  5. उपर्युक्तेषु कश्चन अपि नास्ति

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : लम्बौ कर्णौ यस्य सः।

शब्द रचना Question 2 Detailed Solution

प्रश्न का हिंदी भाषांतर : 'लम्बकर्णः' इस पद का समास विग्रह होता है-

स्पष्टीकरण : 

  • लम्बकर्णः यह समानाधिकरण बहुव्रीहि समास का उदाहरण है। 
  • समानाधिकरण बहुव्रीहि समास में अन्यपद प्रधान हो कर दोनोंं सामासिक पद समान विभक्ति में होते है। 
  • लम्बकर्णः इस सामासिक पद का विग्रह 'जिस के कान(दो कान) लम्बे है, वह अर्थात् गणेश' यह होता है। 

 

अतः स्पष्ट है कि 'लम्बौ कर्णौ यस्य सः' यह इस प्रश्न का सही उत्तर है। 

Important Points 

जिस समास में जब अन्य पदार्थ की प्रधानता होती है तब वह बहुव्रीहि समास कहा जाता है। अर्थात् इस समास में न तो पूर्व पदार्थ की प्रधानता होती है और न ही उत्तर पदार्थ की, अपितु दोनों पदार्थ मिलकर अन्य पदार्थ का बोध कराते हैं। समस्त पद का प्रयोग अन्य पदार्थ के विशेषण के रूप में होता है। उदाहरणार्थ - 

  • पीतम् अम्बरं यस्य सः = पीताम्बरः (विष्णु)।

बहुव्रीहि समास के भेद इस प्रकार है - 

  • समानाधिकरण बहुव्रीहि : जब समास के पूर्व और उत्तर पद में समान विभक्ति (प्रथमा विभक्ति) होती है, तब वह समानाधिकरण बहुव्रीहि समास होता है। उदाहरणार्थ - 
    • प्राप्तम् उदकं येन सः = प्राप्तोदकः (ग्रामः)।
  • व्यधिकरणबहुव्रीहिः : जब समास के पूर्व और उत्तर पदों में भिन्न विभक्ति होती है तब वह व्यधिकरण बहुव्रीहि समास होता है। उदाहरणार्थ- 
    • चक्रं पाणौ यस्य सः = चक्रपाणिः (विष्णुः)।

शब्द रचना Question 3:

'चोरभयम्' पदस्य समासविग्रहः अस्ति-

  1. चोरेण भयम्।
  2. चोरस्य भयम्
  3. चोरात् भयम्
  4. उपर्युक्तेषु एकस्मात् अधिकम्
  5. उपर्युक्तेषु कश्चन अपि नास्ति

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : चोरात् भयम्

शब्द रचना Question 3 Detailed Solution

प्रश्नानुवाद'चोरभयम्' पद का समास-विग्रह है-

स्पष्टीकरण‘चौरभयम्’ का समास-विग्रह होता है- `चौरात् भयम्'

सूत्र:- पञ्चमी भयेन’ अर्थात् भय होने पर पञ्चमी तत्पुरुष समास होता है।

Additional Information

समसनं समासम्’ संक्षिप्त करना ही समास होता है अर्थात् दो या दो से अधिक पदों के विभक्ति, समुच्चय बोधक च आदि को संक्षेप करके एक पद बनाने को समास कहते है- ‘अनेकाषां पदानां एकपदी भवनं समासः।’ इसमें पूर्व और उत्तर दो पद होते हैं। यथा-

  • पित्रा युक्तः = पितृयुक्तः
  • यूपाय दारु = यूपदारु
  • माता च पिता च = पितरौ

समास भेद:- प्रायः समास के पाँच प्रकार बताये गए हैं-

(1) केवलसमास:विशेषसंज्ञाविनिर्मुक्तः केवल समासः’ अर्थात् विशेष संज्ञा रहित जहाँ केवल समास हो। जैसे:-

  • पूर्वं भूतः = भूतपूर्वः

(2) अव्ययीभाव:- ‘प्रायेण पूर्वपदार्थप्रधानोऽव्ययीभावो’ अर्थात् जहाँ पूर्व पद प्रधान हो तथा अव्यय हो। जैसे:- 

  • मतिम् अनतिक्रम्य = यथामति

(3) तत्पुरुष:- ‘उत्तरपदार्थप्रधानस्तत्पुरुषः’ अर्थात् जहाँ उत्तरपद प्रधान हो दोनों पद में अलग-अलग और कभी-कभी समान विभक्ति होती है तथा पूर्वपद के विभक्ति का लोप होता है।

तत्पुरुष समास के भेद:- इसके दो भेद होते हैं-

1) व्याधिकरण तत्पुरुष:- इसके सात प्रकार होते हैं-

द्वितीया तत्पुरुष:- श्रित, अतीत, आगतादि शब्द यदि उत्तरपद हो तो द्वितीया तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-

  • कृष्णं श्रितः = कृष्णश्रित
  • दुःखम् अतीत = दुःखातीत
  • सुखाद् अपेतः = सुखापेतः।

तृतीया तत्पुरुष:- हीन, विद्ध आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो तृतीया तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-

  • सर्पेण दष्टः = सर्पदष्टः
  • शरेण विद्धः = शरविद्धः
  • विद्यया हीनः = विद्याहीनः।

चतुर्थी तत्पुरुष:- बलि, अर्थ, तदर्थ आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो चतुर्थी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-

  • भूताय बलिः = भूतबलिः
  • स्नानाय इदम् = स्नानार्थम्
  • तस्मै इदम् = तदर्थम्।

पञ्चमी तत्पुरुष:- भय, मुक्त, पतित आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो पञ्चमी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-

  • चौरद् भयम् = चौरभयम्
  • रोगात् मुक्तः = रोगमुक्तः
  • स्वर्गात् पतितः = स्वर्गपतितः

षष्ठी तत्पुरुष:- जब समस्त पद में दोनों पद एक दुसरे से सम्बन्धित हो तो षष्ठी तत्पुरुष होता है। जैसे-

  • राज्ञः पुरुषः = राजपुरुषः
  • गङ्गायाः जलम् = गङ्गाजलम्

सप्तमी तत्पुरुष:- शौण्ड, चतुर, कुशल आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो सप्तमी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-

  • सभायां पण्डितः = सभापण्डितः
  • कर्मणि कुशलः = कर्मकुशलः

नञ् तत्पुरुष:- जहाँ पूर्वपद अ, अन् अथवा न हो वहाँ नञ् तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-

  • न ज्ञानम् = अज्ञानम्
  • न आदि = अनादि
  • न आस्तिक = अनास्तिक

2) समानाधिकरण तत्पुरुष:- इसके दो भेद होते हैं-

कर्मधारय:- विशेषण-विशेष्य तथा उपमानोपमेय पदों का परस्पर समास हो तो कर्मधारय समास होता है। जैसे:-

  • नीलम् उत्पलम् = नीलोत्पलम्
  • चन्द्र इव मुखम् = चन्द्रमुखम्

द्विगु:- जब विशेषण संख्यावाची हो तो द्विगु समास होता है। जैसे:-

  • त्रयाणां भुवनानां समाहारः = त्रिभुवनम्
  • सप्तानां दिनानां समाहारः = सप्तदिनम्

(4) द्वन्द्व:- ‘उभयपदार्थप्रधानो द्वन्द्वः’ जहाँ दोनों पद प्रधान हो। इसके विग्रह में च जुडता है। जैसे:- माता च पिता च = पितरौ

  • हरिः च हरः च = हरिहरौ

इसके तीन प्रकार हैं-

  1. इतरेतर द्वन्द्व
  2. एकशेष द्वन्द्व
  3. समाहार द्वन्द्व

(5) बहुव्रीहि:- ‘अन्यपदार्थप्रधानो बहुव्रीहिः’ जहाँ अन्य पद प्रधान हो। जैसे:-

  • पीतम् अम्बरं यस्य सः = पीताम्बरः (हरिः)
  • लम्बः उदरः यस्य सः = लम्बोदरः (गणेशः)

शब्द रचना Question 4:

"अष्टानामध्यायानां समाहारः" इत्यस्य समस्तपदमस्ति-

  1. अष्टाध्यायम्
  2. अष्टाध्यायः
  3. अष्टाध्यायी
  4. उपर्युक्तेषु एकस्मात् अधिकम्
  5. उपर्युक्तेषु कश्चन अपि नास्ति

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : अष्टाध्यायी

शब्द रचना Question 4 Detailed Solution

प्रश्नानुवाद- "अष्टानामध्यायानां समाहारः" इसका समस्त पद है-

समास विग्रह- अष्टानामध्यायानां समाहारः

सामासिक शब्द- अष्टाध्यायी

समास नाम- द्विगु समास

स्पष्टीकरण-

  • 'संख्यापूर्वो द्विगुः' इस सूत्र से जब कर्मधारय समास का पूर्वपद संख्यावाचक तथा उत्तरपद संज्ञावाचक होता है तब वह द्विगु समास कहलाता है।
  • इस समास से समुदाय अथवा 'समूह का बोध' होता है।
  • प्रस्तुत समास के विग्रह में पूर्वपद अष्टानां यह संख्यावाचक है जिससे आठ का समूह यह अर्थ सूचित होता है।
  • द्विगुरेकवचनम्' इस सूत्र से यह समस्तपद प्रायः एकवचन होता है। त्रिभुवनम् यह सामासिक पद एकवचनी है।
  • द्विगु समास प्रायः नपुंसकलिंगी होता है।

उदाहरण -

  1. त्रिलोकी - त्रयाणां लोकानां समाहारः।
  2. नवरात्रम् - नवानां रात्रीणां समाहारः।

अतः यह स्पष्ट होता है कि, पूर्वपद संख्यावाचक होने के कारण "अष्टानामध्यायानां समाहारः" इसका समस्त पद अष्टाध्यायी होगा।

 Additional Information

‘समसनं समासम्’ संक्षिप्त करना ही समास होता है अर्थात् दो या दो से अधिक पदों के विभक्ति, समुच्चय बोधक च आदि को संक्षेप करके एक पद बनाने को समास कहते है- ‘अनेकाषां पदानां एकपदी भवनं समासः।’ इसमें पूर्व और उत्तर दो पद होते हैं। यथा-

  • पित्रा युक्तः = पितृयुक्तः
  • यूपाय दारु = यूपदारु
  • माता च पिता च = पितरौ

शब्द रचना Question 5:

'उपशरदम्' पदस्य समासविग्रहः अस्ति-

  1. शरदः समीपम्
  2. शरदः उपरि
  3. शरदः अनुकूलम्
  4. उपर्युक्तेषु एकस्मात् अधिकम्
  5. उपर्युक्तेषु कश्चन अपि नास्ति

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : शरदः समीपम्

शब्द रचना Question 5 Detailed Solution

प्रश्नानुवाद - 'उपशरदम्' पद का समास विग्रह है-

स्पष्टीकरण - 'उपशरदम्' पद का समास विग्रह होगा - शरदः समीपम्। यहाँ अव्ययीभाव समास हुआ है।

समस्त पद - उपशरदम्

समास विग्रह - शरदः समीपम्

सूत्र - अव्ययं विभक्तिसमीपसमृद्धिव्यद्ध्यर्थाभावात्ययासम्प्रतिशब्दप्रादुर्भावपश्चाद्यथाऽऽनुपूर्व्ययौगपद्यसादृश्यसम्पत्तिसाकल्यान्तवचनेषु।
अर्थ - जब किसी संज्ञा शब्द से पूर्व कोई अव्यय शब्द लगा हो एवं उस अव्यय पद की प्रधानता हो, वहाँ अव्ययीभाव समास होता है। विभक्ति, समीप इत्यादि शब्दों के योग में अव्ययी भाव समास होता है।
सूत्र के अनुसार निम्नलिखित शब्दों के योग में अव्ययी भाव समास होता है-

  1. विभक्ति - अधिहरि (हरौ इति)
  2. समीप के अर्थ में - उपगङ्गम् (गङ्गायाः समीपम्)
  3. समृद्धि के अर्थ में - सुमद्रम् (मद्राणां समृद्धिः)
  4. व्यृद्धि (दरिद्रता, नाश) के अर्थ में - दुर्यवनम् (यवनानां व्यृद्धिः)
  5. अभाव के अर्थ में - निर्मक्षिकम् (मक्षिकाणाम् अभावः)
  6. अत्यय (नाश) के अर्थ में - अतिहिमम् (हिमस्यात्ययः)
  7. असम्प्रति (अनुचित) के अर्थ में - अतिनिद्रम् (निद्रा सम्प्रति न युज्यते)
  8. शब्द-प्रादुर्भाव (प्रकाश) के अर्थ में - इति हरि (हरिशब्दस्य प्रकाशः)
  9. पश्चात् के अर्थ में - अनुहरि (हरेः पश्चात्)
  10. यथा (योग्यता) के अर्थ में - अनुरूपम् (रूपस्य योग्यम्)
  11. अनतिक्रम अर्थ में - यथाशक्ति (शक्तिमनतिक्रम्य)
  12. आनुपूर्व्य (क्रम) के अर्थ में - अनुज्येष्ठम् (ज्येष्ठस्यानु पूर्व्येण)
  13. यौगपद्य (एक साथ) के अर्थ में - सचक्रम् (चक्रेण युगपत्)
  14. सादृश्य के अर्थ में - सहरि (हरेः सादृश्यम्)
  15. सम्पत्ति के अर्थ में - सक्षत्रम् (क्षत्राणां सम्पत्तिः)
  16. साकल्य सहित (सब कुछ) के अर्थ में - सतृणम् (तृणमपि अपरित्यज्य)
  17. अन्त (तक) के अर्थ में - साग्नि (अग्निग्रन्थपर्यन्तम्)
  18. बहि (बाहर) के अर्थ में - बहिर्वनम् (वनात् बहिः)

 

इस तरह सूत्र से स्पष्ट है, अतः यहाँ उपशरदम् पद का समास विग्रह होगा - शरदः समीपम्।

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'उच्चरति' शब्द में जुड़ा उपसर्ग है-

  1. उ उपसर्ग
  2. उप उपसर्ग
  3. उत् उपसर्ग
  4. आ उपसर्ग

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : उत् उपसर्ग

शब्द रचना Question 6 Detailed Solution

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धात रूपों तथा धातुओ से निष्पन्‍न शब्‍दरूपों से पूर्व प्रयुक्त होकर उनके अर्थ का परिवर्तन करने वाले शब्‍दों को उपसर्ग कहते है -

"उपसर्गेण धात्वर्थो बलादन्यत्र नीयते।

प्रहाराहार-संहार-विहार-परिहारवत्॥"

उदाहरण 

उपसर्ग  निर्मित शब्द 
वि विराम, विश्राम 
परि परिहार, परिपूर्ण 
प्र प्रगति, प्रतिष्ठा

उत्

उत्थान, उद्घाटन 

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि 'उच्चरति' पद में "उत्" उपसर्ग प्रयुक्त है।Hintसंस्कृत में कुल 22 उपसर्ग माने गये हैं-

उपसर्ग

अर्थ

उदाहरण

प्र

प्रकृष्ट

प्रगति, प्रतिष्ठा

परा

निषेध, विपरित

पराजितं पराभवति

अप

न्यूनता या हीनता

अपकरोति, अपहरति

सम्

अच्छा

संगच्छति, संस्करोति

अपि ढ़कना अप्यस्ति

अनु

अनुकरण

अनुगमनं अनुकरोति

अव

निचे

अवगच्छति, अवजानन्ति

निर्

निषेध

निर्गच्छति, निराकरोति

निस्

निषेध

निष्कारणं, निस्सरति

दुस्

कठिन, दुष्कर

दुष्टः, दुष्प्रयोजन

दुर्

कठिन, दुष्कर

दुर्गति, दुर्बोध्य

वि

विशिष्ट

विजयते, विगत

आङ्

सिमा

आजिवनम्, आकण्ठम्

नि

निचे

निगदति, निपतति

अधि

प्रधानता या आधार

अधिराजते, अधिहरि

अति

अतिशय

अत्यन्त, अत्याचारः

सु

अच्छा

स्वागतं, सुशोभते

उत्

ऊँचा

उत्कर्षं, उत्पतति

अभि

समीप

अभ्यागतः, अभ्यासः

प्रति

विपरित

प्रत्युपकारः, प्रत्यवदत्

परि

चारो ओर

पर्यावरणं, परिवर्तनम्

उप

समीप

उपकार, उपहार

'वसन्तर्तुः' मे कौन सन्धि है? 

  1. यण् सन्धि 
  2. गुण सन्धि 
  3. वृद्धि सन्धि 
  4. व्यञ्जन सन्धि

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : गुण सन्धि 

शब्द रचना Question 7 Detailed Solution

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'वसन्तर्तुः' का संधि विच्छेद 'वसन्त + ऋतु:' होगा।

सूत्र- आद् गुणः।

नियम- अ/आ + इ/ई = ए,  अ/आ + उ/ऊ = ओ,  अ/आ + ऋ/ॠ = अर्

यहाँ सन्धि- वसन्त + ऋतु = वसन्तर्तुः

Important Points

विकल्पों का स्पष्टीकरण–

स्वर सन्धि

सूत्र

नियम

उदाहरण

यण् सन्धि

इको यणचि

इ/ई + विजातीय स्वर = य् 

उ/ऊ + विजातीय स्वर = व्
ऋ/ॠ + विजातीय स्वर = र्

नदी + अत्र = नद्यत्र

मधु + इति = मध्विति

पितृ + इच्छा = पित्रिच्छा

गुण सन्धि

आद् गुणः

अ/आ + इ/ई = ए

अ/आ + उ/ऊ = ओ

अ/आ + ऋ/ॠ = अर्

उप + इन्द्र = उपेन्द्र

यथा + उचितम् = यथोचितम्

देव + ऋषि = देवर्षि

वृद्धि सन्धि

वृद्धिरेचि

अ/आ + ए/ऐ = 'ऐ

अ/आ + ओ/औ = औ

मम + एक = ममैक

जल + ओघः = जलौघः

Additional Information

विशेष–

दो शब्दों के मेल से जो विकार (परिवर्तन) होता है उसे संधि कहते हैं।जैसे-

  • विद्या + आलय = विद्यालय।
  • रमा + ईश = रमेश
  • न + एकः = नैकः
  • सम्यक् + ज्ञानम् = सम्यग्ज्ञानम्

संधि के तीन प्रकार हैं - 1. स्वर, 2. व्यंजन और 3. विसर्ग,

संधि

परिभाषा

उदाहरण

स्वर

स्वर वर्ण के साथ स्वर वर्ण के 

मेल से विकार उत्पन्न होता है।

 विद्या + अर्थी = विद्यार्थी 

महा + ईशः = महेशः

व्यंजन

एक व्यंजन से दूसरे व्यंजन या 

स्वर के मेल से विकार उत्पन्न होता है।

अहम् + कार = अहंकार

उत् + लासः = उल्लास

विसर्ग

विसर्ग के साथ स्वर या व्यंजन के 
मेल से विकार उत्पन्न होता है।

दुः + आत्मा = दुरात्मा

निः + कपटः = निष्कपटः

'पचनीयम्‌' इत्यत्र प्रकृतिप्रत्ययौ कौ?

  1. पच्‌ + अनीयर्‌
  2. पा + अनीयर्‌
  3. पच्‌ + क्तवतु
  4. पच + तुमुन्‌ 

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : पच्‌ + अनीयर्‌

शब्द रचना Question 8 Detailed Solution

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प्रश्न का अनुवाद - 'पचनीयम्' यहाँ प्रकृति और प्रत्यय क्या है?

स्पष्टीकरण -

  • शब्द - पचनीयम्
  • प्रकृति - पच् धातु
  • प्रत्यय - अनीयर् प्रत्यय

 

सूत्र - तव्यत्तव्यानीयरः।

  • नियम - इस सूत्र से ‘चाहिए’ अर्थ में ‘कर्मवाच्य तथा भाववाच्य’ में ‘अनीयर्’ प्रत्यय जुड़ता है, जिसमें हलन्त्यम्’ से अन्त्य हल् ‘र्’ का लोप होकर ‘अनीय’ शेष बचता है।
    • जैसे- पच् + अनीयर् = पचनीयः

 

अतः स्पष्ट है कि पचनीयम् का प्रकृति है पच् और प्रत्यय है अनीयर्

Important Points

लिङ्गानुसार इसके प्रत्ययान्त शब्दों में परिवर्तन होता है-

लिङ्ग

पुल्लिङ्ग

स्त्रीलिङ्ग

नपुंसकलिङ्ग

शेष प्रत्ययांश

अनीयः

अनीया

अनीयम्

उदाहरण

पचनीयः

पचनीया

पचनीयम्

 

अनीयर् प्रत्यय जुड़ने पर विविध प्रकार के धातुओं में होने वाले परिवर्तन -

धातु प्रकार

परिवर्तन

 उदाहरण

ऐकारान्त धातु

ऐ को आ एवं गुणादेश

गै + अनीयर् = गानीय।

इ, ई, उ, ऊ और ऋ इगन्त धातु

गुणादेश

नी + तव्यत् = नयनीय

उपधा में इ, उ, ऋ हो ऐसे धातु

उपधा में गुणादेश

लिख् + तव्यत् = लेखनीय

Additional Information

प्रत्यय:- ‘प्रति’ उपसर्ग पूर्वक ‘इण्’ धातु से ‘अच्’ प्रत्यय होकर ‘प्रत्यय’ पद निष्पन्न होता है। जिसका अर्थ होता है वे शब्द या शब्दांश जो अन्य शब्द के अन्त में जुड़कर नये सार्थक शब्दों का निर्माण करते हैं, प्रत्यय कहलाते हैं। जैसे- गम्+ क्त्वा = गत्वा। प्रत्यय पाँच प्रकार के होते हैं-

नाम

परिभाषा

उदाहरण

विभक्ति

मूल धातु या प्रातिपदिक से पद बनाने के लिये जुड़ते है। सुप् और तिङ्ग इनके अन्तर्गत आते हैं।

पठ् + तिप् = पठति

राम + सु = रामः

कृत्

धातु के अन्त में जुड़ते हैं।

धृ + क्तिन् = धृति

तद्धित

शब्दों के अन्त में जुड़ते हैं।

श्रेष्ठ + तमप् = श्रेष्ठतम्

स्त्रीप्रत्यय

पुं. स्त्री. में परिवर्तित करने के लिए जुड़ता है।

बालक + टाप् = बालिका

धातु-अवयव

प्रत्यय से पूर्व जुड़ने वाला प्रत्यय होता है।

पठ् + णिच् + तिप् = पाठयति

पठ् + णिच् + शतृ = पाठयन्

‘नीति’ शब्द में प्रयुक्त प्रत्यय है-

  1. क्तिन्
  2. ङीप्
  3. शतृ
  4. क्त

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : क्तिन्

शब्द रचना Question 9 Detailed Solution

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शब्द – नीति

विग्रह – नी + क्तिन्

क्तिन् प्रत्यय-

  • ‘स्त्रियां क्तिन्’ सूत्र से स्त्रीलिंग शब्द बनाने के लिए धातुओं से क्तिन् प्रत्यय होता है।
  • इस प्रत्यय के ‘क’ का लशक्वतद्धिते से तथा ‘न्’ का हलन्त्यम् से लोप हो जाता है और शेष बचता है ति’
  • क्तिन् प्रत्यय से स्त्री प्रत्यय हि बनते है।

अतः 'नीति' का विग्रह 'नी + क्तिन्' तथा 'क्तिन् प्रत्यय' होता है।

Additional Information

विकल्पानुशीलन:-

प्रत्यय

प्रत्यय का नाम

प्रत्ययांश

 उदाहरण

क्तिन्

कृदन्त प्रत्यय

ति

नी + क्तिन् = नीति

ङीप्

स्त्रीप्रत्यय

ई (आनागम)

इन्द्र + ङीप् = ऐन्द्री

शतृ

कृदन्त प्रत्यय

अत्

पठ् + शतृ = पठत्

क्त

कृदन्त प्रत्यय

गम् + क्त = गतः

''महाकविः" शब्द में प्रयुक्त समास है

  1. कर्मधारय
  2. बहुब्रीहि
  3. तत्‍पुरूष
  4. अव्‍ययीभाव

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : कर्मधारय

शब्द रचना Question 10 Detailed Solution

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स्पष्टीकरण -

  • महाकवि शब्द में कर्मधारय समास है।
  • समास विग्रहः = महान् कविः - 'महाकवि:' 
  • विशेषण = महान्, विशेष्य = कविः

सूत्र - विशेषणं विशेष्येण बहुलम्।

  • नियम - यदि प्रथम शब्द विशेषण हो और दूसरा शब्द विशेष्य हो तो, वहाँ कर्मधारय समास होता है। इसे विशेषण पूर्वपद कर्मधारय समास कहते हैं। यहाँ दोनों पद समान विभक्ति में रहते हैं। इसमें कहीं विशेषण-विशेष्य तो कही उपमान-उपमेय विद्यमान रहता है।

उदाहरण

  • नीलम् उत्पलम् - नीलोत्पलम्
  • इस नियमानुसार महाकवि (महान् कवि) में कर्मधारय समास है। इस समास में साधारणतया पूर्वपद विशेषण और उत्तरपद विशेष्य होता है। 

 

अतः स्पष्ट है कि यहाँ महाकविः में कर्मधारय समास है।

Additional Information

समसनं समासः अर्थात् संक्षिप्त होने को समास कहते हैं। समास एक संज्ञा है। दो या दो से अधिक शब्दों का जब समास होकर एक पद बनता है, तो उसे समास कहते हैं। 

समास में दो पद होते हैं - 1. पूर्व पद, 2. उत्तर पद

समास के मुख्यतः 4 भेद है। 

  1. अव्ययीभाव
  2. तत्पुरुष
  3. बहुव्रीहि
  4. द्वन्द्व

(1) अव्ययीभाव समास - ‘पूर्वपदार्थप्रधानोSव्ययीभावः’ अर्थात् जिस पद में पूर्व पद की प्रधानता हो या पद का आरम्भ किसी अव्यय पद से हो रहा हो, वहाँ अव्ययीभाव समास होता है। उदाहरण - 

  • रूपस्य योग्यम् - अनुरूपम्
  • रामस्य पश्चात् - अनुरामम्

(2) तत्पुरुष समास - ‘उत्तरपदप्रधानो तत्पुरुषः’ अर्थात जिस पद में उत्तर पद प्रधान होता है, वहाँ तत्पुरुष समास होता है।  उदाहरण - 

  • सुखम् आपन्नः - सुखापन्नः
  • कूपं पतितः - कूपपतितः

तत्पुरुष समास के मुख्यतः दो भेद होते हैं

  • व्यधिकरण तत्पुरुष समास 
  • समानाधिकरण तत्पुरुष

1. व्यधिकरण तत्पुरुष समास के सात (7) भेद होते हैं, जो निम्नलिखित हैं - 

द्वितीया तत्पुरुष - जहाँ श्रित, अतीत, पतित, गत, अत्यस्त, प्राप्त और आपन्न इन शब्दों का संयोग होता है, वहाँ द्वितीया तत्पुरुष समास होता है। उदाहरण -

  • शोकं पतितः - शोकपतितः

तृतीया तत्पुरुष - जहाँ तृतीयान्त शब्द के साथ पूर्व, सदृश, सम शब्द आता है, तो वहाँ तृतीया तत्पुरुष समास होता है।  उदाहरण - 

  • पित्रा समः - पितृसमः 

चतुर्थी तत्पुरुष - जहाँ पूर्व पद चतुर्थी विभक्ति में होता है अथवा बलि, हित, सुख, रक्षित इन शब्दों को संयोग होता है,  वहाँ चतुर्थी तत्पुरुष समास होता है। उदाहरण -

  • ब्राह्मणाय हितम् - ब्राह्मणहितम्

पञ्चमी तत्पुरुष - जहाँ भय, भीत, भीति इन शब्दों का संयोग होता है, वहाँ पञ्चमी तत्पुरुष समास होता है। उदाहरण - 

  • व्याघ्राद् भीतिः - व्याघ्रभीतिः

षष्ठी तत्पुरुष - जब पूर्व पद षष्ठी विभक्ति में होता है, तो वहाँ षष्ठी तत्पुरुष समास होता है। उदाहरण - 

  • देवानां भाषा - देवभाषा

सप्तमी तत्पुरुष - जब पूर्व पद सप्तमी विभक्ति में रहता है अथवा शौण्ड (चतुर), धूर्त, कितव (शठ), प्रवीण, कुशल, पण्डित इन शब्दों का संयोग होता है, तो वहाँ सप्तमी तत्पुरुष समास होता है। उदाहरण - 

  • सभायां पण्डितः - सभापण्डितः

नञ् तत्पुरुष - जब पूर्व पद शब्द हो, तथा उत्तर पद कोई संज्ञा या विशेषण हो तो, वहाँ नञ् तत्पुरुष समास होता है। उदाहरण

  • न कृतम् - अकृतम्

 

2. समानाधिकरण तत्पुरुष समास के दो भेद होते हैं - 

  • कर्मधारय तत्पुरुष
  • द्विगु तत्पुरुष समास

(1) कर्मधारय तत्पुरुष समास - ऐसा तत्पुरुष समास जहाँ विशेषण-विशेष्य और उपमान-उपमेय का सम्बन्ध होता है, वह कर्मधारय समास होता है। उदाहरण

  • पीतम् उत्पलम् - पीतोत्पलम्
  • घन इव श्यामः - घनश्यामः

(2) द्विगु तत्पुरुष समास - जहाँ प्रथम पद संख्यावाची होता है, वहाँ द्विगु समास होता है। यह तत्पुरुष समास का ही भेद है। उदाहरण

  • त्रयानां  भुवनानां समाहारः - त्रिभुवनम् 
  • चतुर्णां भुजानां समाहारः - चतुर्भुजम्

 

(3) बहुव्रीहि समास - ‘अन्यपदार्थप्रधानो बहुव्रीहिः’ जहाँ दो या दो से अधिक समस्त शब्द किसी अन्य पद को इंगित करते हैं, वहाँ बहुव्रीहि समास होता है। उदाहरण - 

  • महान् आत्मा यस्य सः (बुद्धः) - महात्मा
  • दश आननानि यस्य सः (रावणः) - दशाननः

बहुव्रीहि समास के दो भेद हैं-

  • समानाधिकरण बहुव्रीहि- (जहाँ दोनों शब्द प्रथमान्त होते हैं। जैसे - पीतम् अम्बरम् यस्य सः)
  • व्यधिकरण बहुव्रीहि - (जहाँ दोनों शब्द प्रथमान्त नहीं होते हैं। एक प्रथमान्त होता है और दूसरा शब्द षष्ठी या सप्तमी विभक्ति में होता है। जैसे - चन्द्र शेखरे यस्य सः)

(4) द्वन्द्व समास - ‘उभयपदार्थप्रधानो द्वन्द्वः’ जहाँ दोनों पद (पूर्व पद एवं उत्तर पद) प्रधान होते हैं, वहाँ द्वन्द्व समास होता है। उदाहरण -

  • रामश्च लक्ष्मणश्च भरतश्च - रामलक्ष्मणभरताः
  • पाणी च पादौ च - पाणिपादम

'हसन्ती' पद में प्रत्यय है-

  1. क्तिन्
  2. क्त
  3. शतृ
  4. ल्‍युट्

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : शतृ

शब्द रचना Question 11 Detailed Solution

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‘लटः शतृशानचावप्रथमा समानाधिकरणे’ सूत्र से ‘लट् लकार्’ अर्थ में ‘परस्मैपदी धातूओं’ से ‘शतृ’ प्रत्यय जुड़ता है जिसमें ‘लशक्वतद्धिते’ से ‘श्’ और ‘उपदेशेऽजनुनाशिक’ से ‘ऋ’ का इत् और लोप होकर ‘अत्’ शेष बचता है। जैसे- पठ् + शतृ = पठत्।

लिङ्गानुसार इसके प्रत्ययान्त शब्दों में परिवर्तन होता है-

लिङ्ग

पुंलिङ्ग

स्त्रीलिङ्ग

नपुंसकलिङ्ग

शेष प्रत्ययांश

अन्

अन्ती/अती

अत्

 उदाहरण

पठन्

पठन्ती

पठत्

हस् धातु + शतृ हसन् हसन्ती हसत्

 

अतः स्पष्ट है कि हसन्ती में शतृ प्रत्यय है।

Additional Information

प्रत्यय:- ‘प्रति’ उपसर्ग पूर्वक ‘इण्’ धातु से ‘अच्’ प्रत्यय होकर ‘प्रत्यय’ पद निष्पन्न होता है। जिसका अर्थ होता है वे शब्द या शब्दांश जो अन्य शब्द के अन्त में जुड़कर नये सार्थक शब्दों का निर्माण करते हैं प्रत्यय कहलाते है। जैसे- गम् + क्त्वा = गत्वा। प्रत्यय पाँच प्रकार के होते हैं-

नाम

परिभाषा

उदाहरण

विभक्ति

मूल धातु या प्रातिपदिक से पद बनाने के लिये जुड़ते है। सुप् और तिङ्ग इनके अन्तर्गत आते हैं।

पठ् + तिप् = पठति

राम + सु = रामः

कृत्

धातु के अन्त में जुड़ते हैं।

धृ + क्तिन् = धृति

तद्धित

शब्दों के अन्त में जुड़ते हैं।

श्रेष्ठ + तमप् = श्रेष्ठतम्

स्त्रीप्रत्यय

पुं. स्त्री. में परिवर्तित करने के लिए जुड़ता है।

बालक + टाप् = बालिका

धातु-अवयव

प्रत्यय से पूर्व जुड़ने वाला प्रत्यय होता है।

पठ् + णिच् + तिप् = पाठयति

पठ् + णिच् + शतृ = पाठयन्

'नीलोत्पलम्‌' में कौन-सा समास है?

  1. द्विगु
  2. द्वन्‍द्व
  3. बहुब्रीहि
  4. कर्मधारय

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : कर्मधारय

शब्द रचना Question 12 Detailed Solution

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समस्तपद:– नीलोत्पलम्

समास विग्रह:– नीलम् उत्पलम्

स्पष्टिकरण:– उपर्युक्त समास में ‘नीलम् (नीला रंग)’ विशेषण और ‘उत्पलम् (कमल)’ विशेष्य है

समास में यदि पूर्वपद विशेषण और उत्तरपद विशेष्य हो, तो उसे विशेषण पूर्वपद कर्मधारय कहते है

अतः स्पष्ट होता है कि ‘नीलोत्पलम्’ में कर्मधारय समास होता है।

Additional Information

समसनं समासम्’ संक्षिप्त करना ही समास होता है अर्थात् दो या दो से अधिक पदों के विभक्ति, समुच्चय बोधक च आदि को संक्षेप करके एक पद बनाने को समास कहते है- ‘अनेकाषां पदानां एकपदी भवनं समासः।’ इसमें पूर्व और उत्तर दो पद होते हैं। यथा-

  • पित्रा युक्तः = पितृयुक्तः
  • यूपाय दारु = यूपदारु
  • माता च पिता च = पितरौ

समास भेद:- प्रायः समास के पाँच प्रकार बताये गए हैं-

(1) केवलसमास:विशेषसंज्ञाविनिर्मुक्तः केवल समासः’ अर्थात् विशेष संज्ञा रहित जहाँ केवल समास हो। जैसे:-

  • पूर्वं भूतः = भूतपूर्वः

(2) अव्ययीभाव:- ‘प्रायेण पूर्वपदार्थप्रधानोऽव्ययीभावो’ अर्थात् जहाँ पूर्व पद प्रधान हो तथा अव्यय हो। जैसे:- 

  • मतिम् अनतिक्रम्य = यथामति

(3) तत्पुरुष:- ‘उत्तरपदार्थप्रधानस्तत्पुरुषः’ अर्थात् जहाँ उत्तरपद प्रधान हो दोनों पद में अलग-अलग और कभी-कभी समान विभक्ति होती है तथा पूर्वपद के विभक्ति का लोप होता है।

तत्पुरुष समास के भेद:- इसके दो भेद होते हैं-

1) व्याधिकरण तत्पुरुष:- इसके सात प्रकार होते हैं-

द्वितीया तत्पुरुष:- श्रित, अतीत, आगतादि शब्द यदि उत्तरपद हो तो द्वितीया तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-

  • कृष्णं श्रितः = कृष्णश्रित
  • दुःखम् अतीत = दुःखातीत
  • सुखाद् अपेतः = सुखापेतः।

तृतीया तत्पुरुष:- हीन, विद्ध आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो तृतीया तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-

  • सर्पेण दष्टः = सर्पदष्टः
  • शरेण विद्धः = शरविद्धः
  • विद्यया हीनः = विद्याहीनः।

चतुर्थी तत्पुरुष:- बलि, अर्थ, तदर्थ आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो चतुर्थी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-

  • भूताय बलिः = भूतबलिः
  • स्नानाय इदम् = स्नानार्थम्
  • तस्मै इदम् = तदर्थम्।

पञ्चमी तत्पुरुष:- भय, मुक्त, पतित आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो पञ्चमी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-

  • चौरद् भयम् = चौरभयम्
  • रोगात् मुक्तः = रोगमुक्तः
  • स्वर्गात् पतितः = स्वर्गपतितः

षष्ठी तत्पुरुष:- जब समस्त पद में दोनों पद एक दुसरे से सम्बन्धित हो तो षष्ठी तत्पुरुष होता है। जैसे-

  • राज्ञः पुरुषः = राजपुरुषः
  • गङ्गायाः जलम् = गङ्गाजलम्

सप्तमी तत्पुरुष:- शौण्ड, चतुर, कुशल आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो सप्तमी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-

  • सभायां पण्डितः = सभापण्डितः
  • कर्मणि कुशलः = कर्मकुशलः

नञ् तत्पुरुष:- जहाँ पूर्वपद अ, अन् अथवा न हो वहाँ नञ् तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-

  • न ज्ञानम् = अज्ञानम्
  • न आदि = अनादि
  • न आस्तिक = अनास्तिक

2) समानाधिकरण तत्पुरुष:- इसके दो भेद होते हैं-

कर्मधारय:- विशेषण-विशेष्य तथा उपमानोपमेय पदों का परस्पर समास हो तो कर्मधारय समास होता है। जैसे:-

  • नीलम् उत्पलम् = नीलोत्पलम्
  • चन्द्र इव मुखम् = चन्द्रमुखम्

द्विगु:- जब विशेषण संख्यावाची हो तो द्विगु समास होता है। जैसे:-

  • त्रयाणां भुवनानां समाहारः = त्रिभुवनम्
  • सप्तानां दिनानां समाहारः = सप्तदिनम्

(4) द्वन्द्व:- ‘उभयपदार्थप्रधानो द्वन्द्वः’ जहाँ दोनों पद प्रधान हो। इसके विग्रह में च जुडता है। जैसे:- माता च पिता च = पितरौ

  • हरिः च हरः च = हरिहरौ

इसके तीन प्रकार हैं-

  1. इतरेतर द्वन्द्व
  2. एकशेष द्वन्द्व
  3. समाहार द्वन्द्व

(5) बहुव्रीहि:- ‘अन्यपदार्थप्रधानो बहुव्रीहिः’ जहाँ अन्य पद प्रधान हो। जैसे:-

  • पीतम् अम्बरं यस्य सः = पीताम्बरः (हरिः)
  • लम्बः उदरः यस्य सः = लम्बोदरः (गणेशः)

‘बालिका’ इति पदे प्रत्यय: अस्ति-

  1. चाप्
  2. याट्
  3. डाप्
  4. टाप्

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : टाप्

शब्द रचना Question 13 Detailed Solution

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स्त्रीप्रत्यय: पुंल्लिङ्ग शब्दों को स्त्रीलिंग में परिवर्तित करने के लिये जिन प्रत्ययों का प्रयोग होता है उन्हें स्त्रीप्रत्यय कहते हैं।

  • इनकी संख्या पाणीनि ने आठ बताई है- टाप्, चाप्, डाप्, ङीप्, ङीष्, ङीन्, ऊङ् और ति।
  • यहाँ अकारान्त ‘बालक’ शब्द से ‘अजाद्यतष्टाप्’ सूत्र से ‘टाप्’ प्रत्यय होकर तथा ‘प्रत्ययस्यात्कात्पुर्वस्यात् इदाप्यसुपः’ सूत्र से ‘क’ के पुर्व के ‘अ’ को ‘इ’ आदेश होकर ‘बालिका’ शब्द बनता है।

अतः स्पष्ठ है ‘बालिका’ में 'टाप्' प्रत्यय है।

Key Points

  • चाप् का एकमात्र उदाहरण 'सूर्या' प्राप्त होता है।
  • याट् स्त्रीप्रत्यय नहीं है। 
  • डाप् उन शब्दों के साथ जुड़ता है जिनके अन्त में अन् अथवा मन् होते हैं।

Additional Information

प्रत्यय:- ‘प्रति’ उपसर्ग पूर्वक ‘इण्’ धातु से ‘अच्’ प्रत्यय होकर ‘प्रत्यय’ पद निष्पन्न होता है। जिसका अर्थ होता है वे शब्द या शब्दांश जो अन्य शब्द के अन्त में जुड़कर नये सार्थक शब्दों का निर्माण करते हैं प्रत्यय कहलाते है।जैसे- गम्+ क्त्वा = गत्वा। प्रत्यय पाँच प्रकार के होते हैं-

नाम

परिभाषा

उदाहरण

विभक्ति

मूल धातु या प्रातिपदिक से पद बनाने के लिये जुड़ते है। सुप् और तिङ्ग इनके अन्तर्गत आते हैं।

पठ् + तिप् = पठति

राम + सु = रामः

कृत्

धातु के अन्त में जुड़ते हैं।

धृ + क्तिन् = धृति

तद्धित

शब्दों के अन्त में जुड़ते हैं।

श्रेष्ठ + तमप् = श्रेष्ठतम्

स्त्रीप्रत्यय

पुं. स्त्री. में परिवर्तित करने के लिए जुड़ता है।

बालक + टाप् = बालिका

धातु-अवयव

प्रत्यय से पूर्व जुड़ने वाला प्रत्यय होता है।

पठ् + णिच् + तिप् = पाठयति

पठ् + णिच् + शतृ = पाठयन्

संस्कृते समासः कतिविधः ?

  1. सप्तविधः
  2. अष्टविधः
  3. पञ्चविधः
  4. षड्विधः

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : पञ्चविधः

शब्द रचना Question 14 Detailed Solution

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प्रश्नानुवादसंस्कृत में समास कितने प्रकार के होते हैं ?

स्पष्टीकरण -

  • संस्कृत में पाँच प्रकार के समास बताये गये हैं।

 

‘समसनं समासम्’ संक्षिप्त करना ही समास होता है अर्थात् दो या दो से अधिक पदों के विभक्ति, समुच्चय बोधक च आदि को संक्षेप करके एक पद बनाने को समास कहते है- ‘अनेकाषां पदानां एकपदी भवनं समासः।’ इसमें पूर्व और उत्तर दो पद होते हैं। यथा-

  • पित्रा युक्तः = पितृयुक्तः
  • यूपाय दारु = यूपदारु
  • माता च पिता च = पितरौ

समास भेद:- प्रायः समास के पाँच प्रकार बताये गए हैं-

(1) केवलसमास:‘विशेषसंज्ञाविनिर्मुक्तः केवल समासः’ अर्थात् विशेष संज्ञा रहित जहाँ केवल समास हो। जैसे:-

  • पूर्वं भूतः = भूतपूर्वः

(2) अव्ययीभाव:-‘ प्रायेण पूर्वपदार्थप्रधानोऽव्ययीभावो’ अर्थात् जहाँ पूर्व पद प्रधान हो तथा अव्यय हो। जैसे:- 

  • मतिम् अनतिक्रम्य = यथामति

(3) तत्पुरुष:- ‘उत्तरपदार्थप्रधानस्तत्पुरुषः’ अर्थात् जहाँ उत्तरपद प्रधान हो दोनों पद में अलग-अलग और कभी-कभी समान विभक्ति होती है तथा पूर्वपद के विभक्ति का लोप होता है।

तत्पुरुष समास के भेद:- इसके दो भेद होते हैं-

1) व्याधिकरण तत्पुरुष:- इसके सात प्रकार होते हैं-

द्वितीया तत्पुरुष:-श्रित, अतीत, आगतादि शब्द यदि उत्तरपद हो तो द्वितीया तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-

  • कृष्णं श्रितः = कृष्णश्रित
  • दुःखम् अतीत = दुःखातीत
  • सुखाद् अपेतः = सुखापेतः।

तृतीया तत्पुरुष:- हीन, विद्ध आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो तृतीया तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-

  • सर्पेण दष्टः = सर्पदष्टः
  • शरेण विद्धः = शरविद्धः
  • विद्यया हीनः = विद्याहीनः।

चतुर्थी तत्पुरुष:- बलि, अर्थ, तदर्थ आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो चतुर्थी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-

  • भूताय बलिः = भूतबलिः
  • स्नानाय इदम् = स्नानार्थम्
  • तस्मै इदम् = तदर्थम्।

पञ्चमी तत्पुरुष:- भय, मुक्त, पतित आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो पञ्चमी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-

  • चौरद् भयम् = चौरभयम्
  • रोगात् मुक्तः = रोगमुक्तः
  • स्वर्गात् पतितः = स्वर्गपतितः

षष्ठी तत्पुरुष:- जब समस्त पद में दोनों पद एक दुसरे से सम्बन्धित हो तो षष्ठी तत्पुरुष होता है। जैसे-

  • राज्ञः पुरुषः = राजपुरुषः
  • गङ्गायाः जलम् = गङ्गाजलम्

सप्तमी तत्पुरुष:- शौण्ड, चतुर, कुशल आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो सप्तमी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-

  • सभायां पण्डितः = सभापण्डितः
  • कर्मणि कुशलः = कर्मकुशलः

नञ् तत्पुरुष:- जहाँ पूर्वपद अ, अन् अथवा न हो वहाँ नञ् तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-

  • न ज्ञानम् = अज्ञानम्
  • न आदि = अनादि
  • न आस्तिक = अनास्तिक

2) समानाधिकरण तत्पुरुष:- इसके दो भेद होते हैं-

कर्मधारय:- विशेषण-विशेष्य तथा उपमानोपमेय पदों का परस्पर समास हो तो कर्मधारय समास होता है। जैसे:-

  • नीलम् उत्पलम् = नीलोत्पलम्
  • चन्द्र इव मुखम् = चन्द्रमुखम्

द्विगु:- जब विशेषण संख्यावाची हो तो द्विगु समास होता है। जैसे:-

  • त्रयाणां भुवनानां समाहारः = त्रिभुवनम्
  • सप्तानां दिनानां समाहारः = सप्तदिनम्

(4) द्वन्द्व:- ‘उभयपदार्थप्रधानो द्वन्द्वः’ जहाँ दोनों पद प्रधान हो। इसके विग्रह में च जुडता है। जैसे:- माता च पिता च = पितरौ

  • हरिः च हरः च = हरिहरौ

इसके तीन प्रकार हैं-

  1. इतरेतर द्वन्द्व
  2. एकशेष द्वन्द्व
  3. समाहार द्वन्द्व

(5) बहुव्रीहि:- ‘अन्यपदार्थप्रधानो बहुव्रीहिः’ जहाँ अन्य पद प्रधान हो। जैसे:-

  • पीतम् अम्बरं यस्य सः = पीताम्बरः(हरिः)
  • लम्बः उदरः यस्य सः = लम्बोदरः (गणेशः)

 

अतः उपर्युक्त विवरणों से स्पष्ट होता है कि समास पञ्चविध (पाँच प्रकार के) होते हैं।

'नयनम्' में प्रयुक्त प्रकृति एवं प्रत्यय है -

  1. नम + ल्युट् 
  2. नी + ल्युट् 
  3. ने + ल्युट् 
  4. नयन + ल्युट्

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : नी + ल्युट् 

शब्द रचना Question 15 Detailed Solution

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नयनम् में प्रयुक्त प्रकृति 'नी' और प्रत्यय 'ल्युट्' है।

सूत्र:- ल्युट् च से भाव अर्थ में धातुओं से ल्युट् प्रत्यय होता है। स प्रत्यय के जुड़ने पर कुछ अपेक्षित परिवर्तन होते हैं-

  • भाववाचक शब्दों की रचना के लिए धातुओं में ल्युट् प्रत्यय जोड़ा जाता है।
  • रचना करते समय 'ट्' और 'ल्' लोप हो जाता है और 'यु' शेष रहता है।
  • 'युवोरनाकौ' सूत्र से 'यु' के स्थान पर 'अन' हो जाता है और वह धातु के साथ जुड़ता है।
  • अन जुड़ने के बाद शब्द 'वन' अकारान्त नपुंसकलिङ्ग की तरह चलता है।

Important Points

विकल्पों का स्पष्टीकरण-

  1. नम् + ल्युट् → नम् + अन → नमन
  2. नी + ल्युट् → नी + अन → नयन
  3. ने + ल्युट् → 'ने' धातु अस्तित्व में नहीं है और भाववाचक की रचना के लिए ल्युट् प्रत्यय धातु से जुड़ना चाहिए।
  4. नयन + ल्युट् → 'नयन' यह धातु नहीं प्रातिपदिक है इसलिए इससे ल्युट् जोड़कर भाववाचक शब्द नहीं बनते।

 

इससे यह स्पष्ट होता है कि 'प्रकृति नी + प्रत्यय ल्युट्' से 'नयन' प्रातिपदिक बनता है और उससे नपुंसकलिंग प्रथमा विभक्ति एकवचन में 'नयनम्' शब्द प्राप्त होता है।

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