गद्यांश MCQ Quiz - Objective Question with Answer for गद्यांश - Download Free PDF

Last updated on Jul 2, 2025

Latest गद्यांश MCQ Objective Questions

गद्यांश Question 1:

Comprehension:

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लीखिए।

परिश्रम का वही कमाल हैं। इतिहास में यह कमाल बार बार भिन्न भिन्न रूपों में देखा हैं। चन्द्रगुप्त हो या चाणक्य, सिकंदर हो या नेपोलियन, डिजरायली हो या लिंकन, सतलिज हो या खुशचेन, शंकराचार्य हो या खण्डन मिश्र, नेहरू हो या लालबहादुर शास्त्री सभी का जीवन परिश्रम और अध्यवसाय की रोमांचक कथा हैं। तालियों की गड़गड़ाहट के बिच वे संकुचित होकर बैठ गए। पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। एकांत जंगल में, झाड़ियो और पेड़ों के सामने वे बोलने कर अभ्यास करते रहे। पुरे एक वर्ष बाद जब ये फिर से ब्रिटिश संसद में बोलने खड़े हुए तो उनके धरा-प्रबाह भाषण से सांसदों की साँस रुक गई। वर्षो से उन्होंने ऐसा ओजस्वी और प्रभावपूर्ण भाषण नहीं सुना था। वह चमत्कार परिश्रम का ही परिणाम था।

कहते हैं महान कार-निर्माता उद्योगपति 'फोर्ड' एक साधारण टेक्नीशियन ये, खुशचेन खान मजदूर थे, टाटा, बिरला, मोदी आदि हमारे भारतीय उद्योगपति भी आरंभ में सामान्य-साधारण थे, किंतु निरंतर अटूट परिश्रम ने उन्हें सफलता और सम्पनता के आकाश पर चढ़ दिया। कहने का तात्पर्य यह हैं की जहाँ-जहाँ, जिस जिस क्षेत्र में भी आप सफलता और उत्कर्ष के चमत्कार पाएँगे, उनके पीछे अटूट परिश्रम और लगन की ही कहानी होगी।

विद्याथियों के लिए परिश्रम का विशेष महत्त्व हैं। विद्यार्थी कल साधना कल हैं। यही वह समय हैं जब विद्यार्थी को केवल अपने अध्यनन - मनन और शारीरिक स्वास्थ बनाने के अतिरिक्त और कुछ भी करना नहीं होता उसका एकमात्र ध्यान अपने शारीरिक-मानसिक विकास को समृद्ध करने की ओर रहता हैं। खाने-पिने, पहनने-ओढ़ने अथवा पढाई-लिखाई के खर्चे आदि की उन्हें कोई चिंता नहीं होती । ऐसी स्थिति में भी यदि वे परिश्रम से जी चुराए तो उनका दुर्भाग्य हैं; क्योकि कहा गया हैं-

'सुखार्थिनो कुतो विद्या, विद्यार्थिनो कुतो सुखम' ।

अर्थात सुख चाहने वाले के लिए विद्या कहाँ और विद्या की इच्छा रखने वाले को सुख कहाँ ? परिश्रमी व्यक्ति को अपनी दृष्टि केवल अपने उदेश्य बिंदु पर गड़ाए आगे बढ़ना चाहिए । परिश्रम एक शक्ति हैं। जिसने भी यह शक्ति प्राप्त कर ली सफलता ने उसके गले में जयमाल डाल दी। परिश्रम के बल पर ही व्यक्ति असंभव की संभव कर दिखता हैं। परिश्रम से ही उसने कोयले से हीरे का निर्माण किया, परिश्रम से ही उसने प्रकृति पर अपना अधिकार दिया।

परिश्रम जीवन की मूल शक्ति, उन्नति और सफलता का रहस्य हैं।

गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक होगा:

  1. परिश्रम का महत्व
  2. टाटा और उदयोग
  3. छात्रों की सफलता
  4. परिश्रम की देन

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : परिश्रम का महत्व

गद्यांश Question 1 Detailed Solution

गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक होगा: परिश्रम का महत्व

Key Points

  • गद्यांश के अनुसार -
    • विद्याथियों के लिए परिश्रम का विशेष महत्त्व हैं। विद्यार्थी कल साधना कल हैं।
    • यही वह समय हैं जब विद्यार्थी को केवल अपने अध्यनन - मनन और शारीरिक स्वास्थ बनाने के अतिरिक्त और कुछ भी करना नहीं होता
    • उसका एकमात्र ध्यान अपने शारीरिक-मानसिक विकास को समृद्ध करने की ओर रहता हैं। 

Additional Information 
 

 
अन्य विकल्प -

  • टाटा और उदयोग - इस गद्यांश में टाटा और उद्योग के बारे में कोई चर्चा नहीं है।
  • छात्रों की सफलता - यह विकल्प संबंधित है, लेकिन गद्यांश में परिश्रम के महत्व पर अधिक जोर दिया गया है।
  • परिश्रम की देन - यह विकल्प भी समीप है, लेकिन "परिश्रम का महत्व" इस गद्यांश के लिए अधिक उपयुक्त शीर्षक लगता है, क्योंकि गद्यांश में परिश्रम के महत्व को प्राथमिकता दी गई है।

गद्यांश Question 2:

Comprehension:

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लीखिए।

परिश्रम का वही कमाल हैं। इतिहास में यह कमाल बार बार भिन्न भिन्न रूपों में देखा हैं। चन्द्रगुप्त हो या चाणक्य, सिकंदर हो या नेपोलियन, डिजरायली हो या लिंकन, सतलिज हो या खुशचेन, शंकराचार्य हो या खण्डन मिश्र, नेहरू हो या लालबहादुर शास्त्री सभी का जीवन परिश्रम और अध्यवसाय की रोमांचक कथा हैं। तालियों की गड़गड़ाहट के बिच वे संकुचित होकर बैठ गए। पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। एकांत जंगल में, झाड़ियो और पेड़ों के सामने वे बोलने कर अभ्यास करते रहे। पुरे एक वर्ष बाद जब ये फिर से ब्रिटिश संसद में बोलने खड़े हुए तो उनके धरा-प्रबाह भाषण से सांसदों की साँस रुक गई। वर्षो से उन्होंने ऐसा ओजस्वी और प्रभावपूर्ण भाषण नहीं सुना था। वह चमत्कार परिश्रम का ही परिणाम था।

कहते हैं महान कार-निर्माता उद्योगपति 'फोर्ड' एक साधारण टेक्नीशियन ये, खुशचेन खान मजदूर थे, टाटा, बिरला, मोदी आदि हमारे भारतीय उद्योगपति भी आरंभ में सामान्य-साधारण थे, किंतु निरंतर अटूट परिश्रम ने उन्हें सफलता और सम्पनता के आकाश पर चढ़ दिया। कहने का तात्पर्य यह हैं की जहाँ-जहाँ, जिस जिस क्षेत्र में भी आप सफलता और उत्कर्ष के चमत्कार पाएँगे, उनके पीछे अटूट परिश्रम और लगन की ही कहानी होगी।

विद्याथियों के लिए परिश्रम का विशेष महत्त्व हैं। विद्यार्थी कल साधना कल हैं। यही वह समय हैं जब विद्यार्थी को केवल अपने अध्यनन - मनन और शारीरिक स्वास्थ बनाने के अतिरिक्त और कुछ भी करना नहीं होता उसका एकमात्र ध्यान अपने शारीरिक-मानसिक विकास को समृद्ध करने की ओर रहता हैं। खाने-पिने, पहनने-ओढ़ने अथवा पढाई-लिखाई के खर्चे आदि की उन्हें कोई चिंता नहीं होती । ऐसी स्थिति में भी यदि वे परिश्रम से जी चुराए तो उनका दुर्भाग्य हैं; क्योकि कहा गया हैं-

'सुखार्थिनो कुतो विद्या, विद्यार्थिनो कुतो सुखम' ।

अर्थात सुख चाहने वाले के लिए विद्या कहाँ और विद्या की इच्छा रखने वाले को सुख कहाँ ? परिश्रमी व्यक्ति को अपनी दृष्टि केवल अपने उदेश्य बिंदु पर गड़ाए आगे बढ़ना चाहिए । परिश्रम एक शक्ति हैं। जिसने भी यह शक्ति प्राप्त कर ली सफलता ने उसके गले में जयमाल डाल दी। परिश्रम के बल पर ही व्यक्ति असंभव की संभव कर दिखता हैं। परिश्रम से ही उसने कोयले से हीरे का निर्माण किया, परिश्रम से ही उसने प्रकृति पर अपना अधिकार दिया।

परिश्रम जीवन की मूल शक्ति, उन्नति और सफलता का रहस्य हैं।

परिश्रम व्यक्ति को नहीं देता:

  1. सफलता
  2. सम्पनता
  3. उत्कर्ष
  4. आत्मग्लानि

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : आत्मग्लानि

गद्यांश Question 2 Detailed Solution

परिश्रम व्यक्ति को नहीं देता: आत्मग्लानि

Key Points

  • गद्यांश के अनुसार -
    • किंतु निरंतर अटूट परिश्रम ने उन्हें सफलता और सम्पनता के आकाश पर चढ़ दिया।
    • कहने का तात्पर्य यह हैं की जहाँ-जहाँ, जिस जिस क्षेत्र में भी आप सफलता और उत्कर्ष के चमत्कार पाएँगे,
    • उनके पीछे अटूट परिश्रम और लगन की ही कहानी होगी।

Additional Information 
 
अन्य विकल्प -

  • आत्मग्लानि - गद्यांश के मुख्य बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए, यह स्पष्ट है कि परिश्रम व्यक्ति को आत्मग्लानि नहीं देता।
    • इसके विपरीत, परिश्रम व्यक्ति को सफलता, उत्कर्ष और संपन्नता प्रदान करता है।

गद्यांश Question 3:

Comprehension:

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लीखिए।

परिश्रम का वही कमाल हैं। इतिहास में यह कमाल बार बार भिन्न भिन्न रूपों में देखा हैं। चन्द्रगुप्त हो या चाणक्य, सिकंदर हो या नेपोलियन, डिजरायली हो या लिंकन, सतलिज हो या खुशचेन, शंकराचार्य हो या खण्डन मिश्र, नेहरू हो या लालबहादुर शास्त्री सभी का जीवन परिश्रम और अध्यवसाय की रोमांचक कथा हैं। तालियों की गड़गड़ाहट के बिच वे संकुचित होकर बैठ गए। पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। एकांत जंगल में, झाड़ियो और पेड़ों के सामने वे बोलने कर अभ्यास करते रहे। पुरे एक वर्ष बाद जब ये फिर से ब्रिटिश संसद में बोलने खड़े हुए तो उनके धरा-प्रबाह भाषण से सांसदों की साँस रुक गई। वर्षो से उन्होंने ऐसा ओजस्वी और प्रभावपूर्ण भाषण नहीं सुना था। वह चमत्कार परिश्रम का ही परिणाम था।

कहते हैं महान कार-निर्माता उद्योगपति 'फोर्ड' एक साधारण टेक्नीशियन ये, खुशचेन खान मजदूर थे, टाटा, बिरला, मोदी आदि हमारे भारतीय उद्योगपति भी आरंभ में सामान्य-साधारण थे, किंतु निरंतर अटूट परिश्रम ने उन्हें सफलता और सम्पनता के आकाश पर चढ़ दिया। कहने का तात्पर्य यह हैं की जहाँ-जहाँ, जिस जिस क्षेत्र में भी आप सफलता और उत्कर्ष के चमत्कार पाएँगे, उनके पीछे अटूट परिश्रम और लगन की ही कहानी होगी।

विद्याथियों के लिए परिश्रम का विशेष महत्त्व हैं। विद्यार्थी कल साधना कल हैं। यही वह समय हैं जब विद्यार्थी को केवल अपने अध्यनन - मनन और शारीरिक स्वास्थ बनाने के अतिरिक्त और कुछ भी करना नहीं होता उसका एकमात्र ध्यान अपने शारीरिक-मानसिक विकास को समृद्ध करने की ओर रहता हैं। खाने-पिने, पहनने-ओढ़ने अथवा पढाई-लिखाई के खर्चे आदि की उन्हें कोई चिंता नहीं होती । ऐसी स्थिति में भी यदि वे परिश्रम से जी चुराए तो उनका दुर्भाग्य हैं; क्योकि कहा गया हैं-

'सुखार्थिनो कुतो विद्या, विद्यार्थिनो कुतो सुखम' ।

अर्थात सुख चाहने वाले के लिए विद्या कहाँ और विद्या की इच्छा रखने वाले को सुख कहाँ ? परिश्रमी व्यक्ति को अपनी दृष्टि केवल अपने उदेश्य बिंदु पर गड़ाए आगे बढ़ना चाहिए । परिश्रम एक शक्ति हैं। जिसने भी यह शक्ति प्राप्त कर ली सफलता ने उसके गले में जयमाल डाल दी। परिश्रम के बल पर ही व्यक्ति असंभव की संभव कर दिखता हैं। परिश्रम से ही उसने कोयले से हीरे का निर्माण किया, परिश्रम से ही उसने प्रकृति पर अपना अधिकार दिया।

परिश्रम जीवन की मूल शक्ति, उन्नति और सफलता का रहस्य हैं।

निम्नलिखित में से मजदूर कौन बनेगा ?

  1. फोर्ड
  2. खुशचेन खान
  3. टाटा
  4. मोदी

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : खुशचेन खान

गद्यांश Question 3 Detailed Solution

मजदूर बनेगा - खुशचेन खान

Key Points

  • गद्यांश के अनुसार -
    • कहते हैं महान कार-निर्माता उद्योगपति 'फोर्ड' एक साधारण टेक्नीशियन ये,
    • खुशचेन खान मजदूर थे, टाटा, बिरला, मोदी आदि हमारे भारतीय उद्योगपति भी आरंभ में सामान्य-साधारण थे,
    • किंतु निरंतर अटूट परिश्रम ने उन्हें सफलता और सम्पनता के आकाश पर चढ़ दिया।

Additional Information अन्य विकल्प -

  • फोर्ड - फोर्ड एक साधारण टेक्नीशियन थे, मजदूर नहीं। वे महान कार-निर्माता उद्योगपति बने।
  • टाटा - टाटा भी आरंभ में सामान्य-साधारण थे, लेकिन मजदूर नहीं। उन्होंने परिश्रम से सफलता प्राप्त की।
  • मोदी - मोदी भी सामान्य-साधारण थे, लेकिन मजदूर नहीं। उनका भी रास्ता निरंतर परिश्रम के माध्यम से सफल हुआ।

गद्यांश Question 4:

Comprehension:

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लीखिए।

परिश्रम का वही कमाल हैं। इतिहास में यह कमाल बार बार भिन्न भिन्न रूपों में देखा हैं। चन्द्रगुप्त हो या चाणक्य, सिकंदर हो या नेपोलियन, डिजरायली हो या लिंकन, सतलिज हो या खुशचेन, शंकराचार्य हो या खण्डन मिश्र, नेहरू हो या लालबहादुर शास्त्री सभी का जीवन परिश्रम और अध्यवसाय की रोमांचक कथा हैं। तालियों की गड़गड़ाहट के बिच वे संकुचित होकर बैठ गए। पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। एकांत जंगल में, झाड़ियो और पेड़ों के सामने वे बोलने कर अभ्यास करते रहे। पुरे एक वर्ष बाद जब ये फिर से ब्रिटिश संसद में बोलने खड़े हुए तो उनके धरा-प्रबाह भाषण से सांसदों की साँस रुक गई। वर्षो से उन्होंने ऐसा ओजस्वी और प्रभावपूर्ण भाषण नहीं सुना था। वह चमत्कार परिश्रम का ही परिणाम था।

कहते हैं महान कार-निर्माता उद्योगपति 'फोर्ड' एक साधारण टेक्नीशियन ये, खुशचेन खान मजदूर थे, टाटा, बिरला, मोदी आदि हमारे भारतीय उद्योगपति भी आरंभ में सामान्य-साधारण थे, किंतु निरंतर अटूट परिश्रम ने उन्हें सफलता और सम्पनता के आकाश पर चढ़ दिया। कहने का तात्पर्य यह हैं की जहाँ-जहाँ, जिस जिस क्षेत्र में भी आप सफलता और उत्कर्ष के चमत्कार पाएँगे, उनके पीछे अटूट परिश्रम और लगन की ही कहानी होगी।

विद्याथियों के लिए परिश्रम का विशेष महत्त्व हैं। विद्यार्थी कल साधना कल हैं। यही वह समय हैं जब विद्यार्थी को केवल अपने अध्यनन - मनन और शारीरिक स्वास्थ बनाने के अतिरिक्त और कुछ भी करना नहीं होता उसका एकमात्र ध्यान अपने शारीरिक-मानसिक विकास को समृद्ध करने की ओर रहता हैं। खाने-पिने, पहनने-ओढ़ने अथवा पढाई-लिखाई के खर्चे आदि की उन्हें कोई चिंता नहीं होती । ऐसी स्थिति में भी यदि वे परिश्रम से जी चुराए तो उनका दुर्भाग्य हैं; क्योकि कहा गया हैं-

'सुखार्थिनो कुतो विद्या, विद्यार्थिनो कुतो सुखम' ।

अर्थात सुख चाहने वाले के लिए विद्या कहाँ और विद्या की इच्छा रखने वाले को सुख कहाँ ? परिश्रमी व्यक्ति को अपनी दृष्टि केवल अपने उदेश्य बिंदु पर गड़ाए आगे बढ़ना चाहिए । परिश्रम एक शक्ति हैं। जिसने भी यह शक्ति प्राप्त कर ली सफलता ने उसके गले में जयमाल डाल दी। परिश्रम के बल पर ही व्यक्ति असंभव की संभव कर दिखता हैं। परिश्रम से ही उसने कोयले से हीरे का निर्माण किया, परिश्रम से ही उसने प्रकृति पर अपना अधिकार दिया।

परिश्रम जीवन की मूल शक्ति, उन्नति और सफलता का रहस्य हैं।

सफलता के लिए विद्यार्थी को छोड़ना पड़ता है:

  1. सुख
  2. दुःख
  3. परिवार
  4. मित्र- बंधू

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : सुख

गद्यांश Question 4 Detailed Solution

सफलता के लिए विद्यार्थी को छोड़ना पड़ता है: सुख

Key Points

  • गद्यांश के अनुसार -
    • ऐसी स्थिति में भी यदि वे परिश्रम से जी चुराए तो उनका दुर्भाग्य हैं;
    • क्योकि कहा गया हैं- 'सुखार्थिनो कुतो विद्या, विद्यार्थिनो कुतो सुखम' ।
    • अर्थात सुख चाहने वाले के लिए विद्या कहाँ और विद्या की इच्छा रखने वाले को सुख कहाँ ?
    • परिश्रमी व्यक्ति को अपनी दृष्टि केवल अपने उदेश्य बिंदु पर गड़ाए आगे बढ़ना चाहिए । परिश्रम एक शक्ति हैं। 

Additional Informationअन्य विकल्प -

  • दुःख - सफलता पाने के लिए विद्यार्थी को दुःख छोड़ने की आवश्यकता नहीं है; बल्कि, दुःख और कठिनाईयाँ अक्सर सफलता की राह में आती हैं और उनका सामना करना पड़ता है।
  • परिवार - विद्यार्थी को अपने परिवार को छोड़ने की आवश्यकता नहीं होती है। परिवार अक्सर सहायता और प्रेरणा का स्रोत होता है।
  • मित्र-बंधू - मित्र और बंधु सहयोग और समर्थन प्रदान करते हैं। हालांकि, कभी-कभी अपने लक्ष्य पर ध्यान देने के लिए सामाजिक जीवन में कुछ कटौती करनी पड़ सकती है।

गद्यांश Question 5:

Comprehension:

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लीखिए।

परिश्रम का वही कमाल हैं। इतिहास में यह कमाल बार बार भिन्न भिन्न रूपों में देखा हैं। चन्द्रगुप्त हो या चाणक्य, सिकंदर हो या नेपोलियन, डिजरायली हो या लिंकन, सतलिज हो या खुशचेन, शंकराचार्य हो या खण्डन मिश्र, नेहरू हो या लालबहादुर शास्त्री सभी का जीवन परिश्रम और अध्यवसाय की रोमांचक कथा हैं। तालियों की गड़गड़ाहट के बिच वे संकुचित होकर बैठ गए। पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। एकांत जंगल में, झाड़ियो और पेड़ों के सामने वे बोलने कर अभ्यास करते रहे। पुरे एक वर्ष बाद जब ये फिर से ब्रिटिश संसद में बोलने खड़े हुए तो उनके धरा-प्रबाह भाषण से सांसदों की साँस रुक गई। वर्षो से उन्होंने ऐसा ओजस्वी और प्रभावपूर्ण भाषण नहीं सुना था। वह चमत्कार परिश्रम का ही परिणाम था।

कहते हैं महान कार-निर्माता उद्योगपति 'फोर्ड' एक साधारण टेक्नीशियन ये, खुशचेन खान मजदूर थे, टाटा, बिरला, मोदी आदि हमारे भारतीय उद्योगपति भी आरंभ में सामान्य-साधारण थे, किंतु निरंतर अटूट परिश्रम ने उन्हें सफलता और सम्पनता के आकाश पर चढ़ दिया। कहने का तात्पर्य यह हैं की जहाँ-जहाँ, जिस जिस क्षेत्र में भी आप सफलता और उत्कर्ष के चमत्कार पाएँगे, उनके पीछे अटूट परिश्रम और लगन की ही कहानी होगी।

विद्याथियों के लिए परिश्रम का विशेष महत्त्व हैं। विद्यार्थी कल साधना कल हैं। यही वह समय हैं जब विद्यार्थी को केवल अपने अध्यनन - मनन और शारीरिक स्वास्थ बनाने के अतिरिक्त और कुछ भी करना नहीं होता उसका एकमात्र ध्यान अपने शारीरिक-मानसिक विकास को समृद्ध करने की ओर रहता हैं। खाने-पिने, पहनने-ओढ़ने अथवा पढाई-लिखाई के खर्चे आदि की उन्हें कोई चिंता नहीं होती । ऐसी स्थिति में भी यदि वे परिश्रम से जी चुराए तो उनका दुर्भाग्य हैं; क्योकि कहा गया हैं-

'सुखार्थिनो कुतो विद्या, विद्यार्थिनो कुतो सुखम' ।

अर्थात सुख चाहने वाले के लिए विद्या कहाँ और विद्या की इच्छा रखने वाले को सुख कहाँ ? परिश्रमी व्यक्ति को अपनी दृष्टि केवल अपने उदेश्य बिंदु पर गड़ाए आगे बढ़ना चाहिए । परिश्रम एक शक्ति हैं। जिसने भी यह शक्ति प्राप्त कर ली सफलता ने उसके गले में जयमाल डाल दी। परिश्रम के बल पर ही व्यक्ति असंभव की संभव कर दिखता हैं। परिश्रम से ही उसने कोयले से हीरे का निर्माण किया, परिश्रम से ही उसने प्रकृति पर अपना अधिकार दिया।

परिश्रम जीवन की मूल शक्ति, उन्नति और सफलता का रहस्य हैं।

परिश्रम जीवन की मूल शक्ति, उन्नति और सफलता का रहस्य हैं। सफलता का आधार होता है:

  1. श्रम
  2. भाग्य
  3. विद्या
  4. शक्ति

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : श्रम

गद्यांश Question 5 Detailed Solution

परिश्रम जीवन की मूल शक्ति, उन्नति और सफलता का रहस्य हैं। सफलता का आधार होता है: श्रम

Key Points

  • गद्यांश के अनुसार -
    • टाटा, बिरला, मोदी आदि हमारे भारतीय उद्योगपति भी आरंभ में सामान्य-साधारण थे,
    • किंतु निरंतर अटूट परिश्रम ने उन्हें सफलता और सम्पनता के आकाश पर चढ़ दिया।
    • कहने का तात्पर्य यह हैं की जहाँ-जहाँ, जिस जिस क्षेत्र में भी आप सफलता और उत्कर्ष के चमत्कार पाएँगे,
    • उनके पीछे अटूट परिश्रम और लगन की ही कहानी होगी।​

Additional Informationअन्य विकल्प -

  • भाग्य - 
    • भाग्य किस्मत या नसीब को दर्शाता है।
    • कुछ लोग सफलता को भाग्य से जोड़ते हैं, लेकिन गद्यांश ने भाग्य पर जोर नहीं दिया है।
  • विद्या -
    • विद्या का अर्थ है ज्ञान या शिक्षा।
    • हालांकि विद्या महत्वपूर्ण है, गद्यांश में सफलता का प्रमुख कारण अटूट परिश्रम बताया गया है।
  • शक्ति -
    • शक्ति ताकत या क्षमता को दर्शाती है।
    • बिना परिश्रम के शक्ति का उपयोग नहीं हो सकता, इसीलिए गद्यांश में शक्ति की बजाय परिश्रम को प्राथमिकता दी गई है।

 

Top गद्यांश MCQ Objective Questions

Comprehension:

आपको यह ध्यान में रखना चाहिए कि प्रारंभिक शिक्षा में सफाई, तन्दुरुस्ती, भोजनशास्त्र, अपना काम आप करने और घर पर माता-पिता को मदद देने वगैरह के मूल सिद्धान्त शामिल हों । मौजूदा पीढ़ी के लड़कों को स्वच्छता और स्वावलंबन का कोई ज्ञान नहीं होता और वे शरीर से कमजोर होते हैं । इसलिए मैं संगीतमय कवायद के जरिए उनको अनिवार्य शारीरिक तालीम दिला पाऊँगा ।

बच्चों के प्रारंभिक शिक्षा के मूल सिद्धान्त क्या नहीं है ?

  1. तन्दुरुस्ती
  2. संगीत
  3. सफाई
  4. भोजनशास्त्र

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : संगीत

गद्यांश Question 6 Detailed Solution

Download Solution PDF

बच्चों के प्रारंभिक शिक्षा के मूल सिद्धान्त नहीं है- संगीत

Key Points

  • गद्यांश के अनुसार -
    • आपको यह ध्यान में रखना चाहिए कि प्रारंभिक शिक्षा में सफाई, तन्दुरुस्ती, भोजनशास्त्र,
    • अपना काम आप करने और घर पर माता-पिता को मदद देने वगैरह के मूल सिद्धान्त शामिल हों । 

Additional Information 
 
अन्य विकल्प -

  • संगीत - गद्यांश के अनुसार, बच्चों के प्रारंभिक शिक्षा का एक मूल सिद्धान्त संगीत नहीं है। 

Comprehension:

आपको यह ध्यान में रखना चाहिए कि प्रारंभिक शिक्षा में सफाई, तन्दुरुस्ती, भोजनशास्त्र, अपना काम आप करने और घर पर माता-पिता को मदद देने वगैरह के मूल सिद्धान्त शामिल हों । मौजूदा पीढ़ी के लड़कों को स्वच्छता और स्वावलंबन का कोई ज्ञान नहीं होता और वे शरीर से कमजोर होते हैं । इसलिए मैं संगीतमय कवायद के जरिए उनको अनिवार्य शारीरिक तालीम दिला पाऊँगा ।

घर पर किसकी मदद की बात कही गयी है ?

  1. चाचा-चाची
  2. भाई-बहन
  3. पास-पड़ोस
  4. माता-पिता

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : माता-पिता

गद्यांश Question 7 Detailed Solution

Download Solution PDF

घर पर माता-पिता की मदद की बात कही गयी है

Key Points

  • गद्यांश के अनुसार -
    • आपको यह ध्यान में रखना चाहिए कि प्रारंभिक शिक्षा में सफाई, तन्दुरुस्ती, भोजनशास्त्र,
    • अपना काम आप करने और घर पर माता-पिता को मदद देने वगैरह के मूल सिद्धान्त शामिल हों । 

Additional Information अन्य विकल्प -

  • चाचा-चाची: बच्चों को अपने चाचा-चाची की भी मदद करनी सिखाई जा सकती है,
    • जिससे वे परिवार के सभी सदस्यों के साथ सहयोग करना और सामंजस्य बैठाना सीखें।
  • भाई-बहन: बच्चों को अपने भाई-बहनों की भी सहायता करनी चाहिए।
    • यह उन्हें पारिवारिक जिम्मेदारियों को साझा करना, सहयोग और टीमवर्क का महत्व समझने में मदद करेगा।
  • पास-पड़ोस: बच्चों को समाज एवं पड़ोसियों के प्रति भी जिम्मेदार बनाना महत्वपूर्ण है।
    • इससे वे अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों को समझ सकेंगे और समुदाय के प्रति सम्मान और सहयोग का भाव विकसित कर सकेंगे।

Comprehension:

आपको यह ध्यान में रखना चाहिए कि प्रारंभिक शिक्षा में सफाई, तन्दुरुस्ती, भोजनशास्त्र, अपना काम आप करने और घर पर माता-पिता को मदद देने वगैरह के मूल सिद्धान्त शामिल हों । मौजूदा पीढ़ी के लड़कों को स्वच्छता और स्वावलंबन का कोई ज्ञान नहीं होता और वे शरीर से कमजोर होते हैं । इसलिए मैं संगीतमय कवायद के जरिए उनको अनिवार्य शारीरिक तालीम दिला पाऊँगा ।

उपरोक्त गद्यांश में किस शिक्षा की बात कही गयी है ?

  1. अनिवार्य शिक्षा
  2. प्रौढ़ शिक्षा
  3. प्रारंभिक शिक्षा
  4. वयस्क शिक्षा

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : प्रारंभिक शिक्षा

गद्यांश Question 8 Detailed Solution

Download Solution PDF

उपरोक्त गद्यांश में प्रारंभिक शिक्षा की बात कही गयी है

Key Points

  • गद्यांश के अनुसार -
    • आपको यह ध्यान में रखना चाहिए कि प्रारंभिक शिक्षा में सफाई, तन्दुरुस्ती, भोजनशास्त्र,
    • अपना काम आप करने और घर पर माता-पिता को मदद देने वगैरह के मूल सिद्धान्त शामिल हों । 

Additional Information 
 
अन्य विकल्प -

  • अनिवार्य शिक्षा: अनिवार्य शिक्षा यह सुनिश्चित करती है कि सभी बच्चे एक निश्चित आयु तक न्यूनतम शैक्षणिक मानकों को पूरा करें।
    • इसमें आमतौर पर भाषा, गणित, विज्ञान, सामाजिक अध्ययन आदि विषयों को शामिल किया जाता है।
  • प्रौढ़ शिक्षा: प्रौढ़ शिक्षा का उद्देश्य वयस्कों को उन कौशलों और ज्ञान का शिक्षण देना होता है जो वे अपनी पिछली शिक्षा के दौरान नहीं सीख पाए थे।
    • इसमें व्यावसायिक प्रशिक्षण, निरक्षरता उन्मूलन और अन्य व्यावहारिक जीवन कौशल शामिल होते हैं।
  • वयस्क शिक्षा: वयस्क शिक्षा वयस्कों को नई जानकारी और कौशल सिखाने के लिए होती है, ताकि वे अपनी जिंदगी में सुधार कर सकें।
    • यह उन व्यक्तियों के लिए होती है जो अपनी शिक्षा को जारी रखना चाहते हैं या किसी नए क्षेत्रों में ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं।

Comprehension:

आपको यह ध्यान में रखना चाहिए कि प्रारंभिक शिक्षा में सफाई, तन्दुरुस्ती, भोजनशास्त्र, अपना काम आप करने और घर पर माता-पिता को मदद देने वगैरह के मूल सिद्धान्त शामिल हों । मौजूदा पीढ़ी के लड़कों को स्वच्छता और स्वावलंबन का कोई ज्ञान नहीं होता और वे शरीर से कमजोर होते हैं । इसलिए मैं संगीतमय कवायद के जरिए उनको अनिवार्य शारीरिक तालीम दिला पाऊँगा ।

किस अनिवार्य तालीम की बात गद्यांश में की जा रही है ?

  1. शारीरिक
  2. आध्यात्मिक
  3. मानसिक
  4. वैज्ञानिक

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : शारीरिक

गद्यांश Question 9 Detailed Solution

Download Solution PDF

शारीरिक अनिवार्य तालीम की बात गद्यांश में की जा रही है

Key Points

  • गद्यांश के अनुसार -
    • मौजूदा पीढ़ी के लड़कों को स्वच्छता और स्वावलंबन का कोई ज्ञान नहीं होता और वे शरीर से कमजोर होते हैं ।
    • इसलिए मैं संगीतमय कवायद के जरिए उनको अनिवार्य शारीरिक तालीम दिला पाऊँगा ।

Additional Information अन्य विकल्प -

 

  • आध्यात्मिक: आध्यात्मिक तालीम के द्वारा लड़कों को मानसिक शांति, आंतरिक बल और सकारात्मक दृष्टिकोण प्रदान किया जा सकता है।
    • यह उन्हें जीवन के प्रति अधिक संतुलित और जिम्मेदारीपूर्ण बना सकता है।
  • मानसिक: मानसिक तालीम के माध्यम से लड़कों को ज्ञान, तर्क, आत्मविश्लेषण और मानसिक स्ट्रेंथ विकसित करने की शिक्षा दी जा सकती है।
    • यह उन्हें निर्णय लेने और तनाव का सामना करने के लिए मजबूत बनाएगी।
  • वैज्ञानिक: वैज्ञानिक तालीम के जरिए लड़कों को वैज्ञानिक सोच, नवाचार और समस्या समाधान के कौशल सिखाए जा सकते हैं।
    • इससे वे स्वावलंबी और तार्किक दृष्टिकोण से मजबूत बन सकते हैं।

Comprehension:

आपको यह ध्यान में रखना चाहिए कि प्रारंभिक शिक्षा में सफाई, तन्दुरुस्ती, भोजनशास्त्र, अपना काम आप करने और घर पर माता-पिता को मदद देने वगैरह के मूल सिद्धान्त शामिल हों । मौजूदा पीढ़ी के लड़कों को स्वच्छता और स्वावलंबन का कोई ज्ञान नहीं होता और वे शरीर से कमजोर होते हैं । इसलिए मैं संगीतमय कवायद के जरिए उनको अनिवार्य शारीरिक तालीम दिला पाऊँगा ।

मौजूदा पीढ़ी के लड़कों में ज्ञान नहीं होता है

  1. संगीत का
  2. स्वावलंबन का
  3. विज्ञान का
  4. खेल का

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : स्वावलंबन का

गद्यांश Question 10 Detailed Solution

Download Solution PDF

मौजूदा पीढ़ी के लड़कों में ज्ञान नहीं होता है- स्वावलंबन का

Key Points

  • गद्यांश के अनुसार -
    • मौजूदा पीढ़ी के लड़कों को स्वच्छता और स्वावलंबन का कोई ज्ञान नहीं होता और वे शरीर से कमजोर होते हैं ।
    • इसलिए मैं संगीतमय कवायद के जरिए उनको अनिवार्य शारीरिक तालीम दिला पाऊँगा ।

Additional Informationअन्य विकल्प -

  • संगीत: संगीत का प्रयोग लड़कों को मानसिक रूप से मजबूत और अनुशासित बनाने के लिए किया जा सकता है। संगीत उनके रचनात्मकता को भी बढ़ावा देता है।
  • विज्ञान: विज्ञान की शिक्षा देकर लड़कों को तार्किक और व्यावहारिक ज्ञान प्रदान किया जा सकता है, जिससे वे स्वावलंबी बन सकें।
  • खेल: खेल के माध्यम से लड़कों को शारीरिक रूप से मजबूत और स्वस्थ बनाया जा सकता है। खेल अनुशासन, टीम वर्क और नेतृत्व कौशल भी सिखाते हैं।

Comprehension:

निम्नलिखित अपठित गद्यांश के आधार पर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिए: (प्रश्न संख्या 94 से 99 तक)
नई आलोचना (New Criticism) बीसवीं सदी के मध्यवर्ती दशकों में अमेरिकी साहित्यिक आलोचना के क्षेत्र में कृति के रूपवादी अनुशीलन का एक आन्दोलन था, जिसने अपना यह नाम सन् 1941 ई. में प्रकाशित जॉन क्रोरेंसम की पुस्तक - 'द न्यू क्रिटिसिज्म' से ग्रहण किया था। अमेरिकी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में सन् 1960 ई. के दशक के अन्त तक इस साहित्यिक प्रविधि का बहुत बोलबाला था। 'नई आलोचना' उन्नीसवीं सदी की उस पुरानी आलोचना-दृष्टि की प्रतिक्रिया में जन्मी थी, जिसमें कृति पर विचार करते समय कृति के ऐतिहासिक सन्दर्भ, दार्शनिक आधार, रचनाकार के जीवनवृत्त, उसके घोषित उद्देश्यों, साहित्य के सन्दर्भ-स्रोतों और कृति में निहित राजनीतिक एवं सामाजिक अभिप्रायों को ही सर्वोपरि माना जाता था । इसके विपरीत नई आलोचना का जोर इस बात पर था कि साहित्यिक कृतियाँ अपनी संरचना में पूर्णतया आत्मनिर्भर होती हैं और वे अपनी एक निरपेक्ष और स्वायत्त सौन्दर्यपरक सत्ता निर्मित करती हैं। साहित्यिक व्याख्याओं का सरोकार कृति की बाह्य परिस्थितियों से या लेखक के घोषित मंतव्य, उद्देश्य और सरोकार या पाठक पर पड़ने वाले उस कृति के प्रभाव से नहीं है। नई आलोचना 'टेक्स्ट' या पाठ को आधार मानते हुए कृति के सूक्ष्म और विस्तृत भाषिक विश्लेषण को 'क्लोज रीडिंग' को महत्त्व देती थी। उसका सरोकार पाठ में अन्तर्निहित विभिन्न प्रकार के उन सम्बन्ध सूत्रों से था, जो किसी कृति को उसका अपना एक विशिष्ट चरित्र प्रदान करते हैं या उसकी एक खास संरचना का गठन करते हैं।

अमेरिकी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में सन् 1960 ई. के दशक के अन्त तक किस साहित्यिक प्रविधि का बोलबाला था ?.

  1. 'द न्यू क्रिटिसिज्म' का
  2. 'पोस्ट मॉडर्निज़्म' का 
  3. 'स्टोरी राइटिंग' का
  4. 'नॉबेल राइटिंग' का

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : 'द न्यू क्रिटिसिज्म' का

गद्यांश Question 11 Detailed Solution

Download Solution PDF

अमेरिकी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में सन् 1960 ई. के दशक के अन्त तक 'द न्यू क्रिटिसिज्म' का साहित्यिक प्रविधि का बोलबाला था

Key Points

  • गद्यांश के आधार-
    • नई आलोचना (New Criticism) बीसवीं सदी के मध्यवर्ती दशकों में
    • अमेरिकी साहित्यिक आलोचना के क्षेत्र में कृति के रूपवादी अनुशीलन का एक आन्दोलन था,
    • जिसने अपना यह नाम सन् 1941 ई. में प्रकाशित जॉन क्रोरेंसम की पुस्तक - 'द न्यू क्रिटिसिज्म' से ग्रहण किया था।
    • अमेरिकी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में सन् 1960 ई. के दशक के अन्त तक इस साहित्यिक प्रविधि का बहुत बोलबाला था।
    • 'नई आलोचना' उन्नीसवीं सदी की उस पुरानी आलोचना-दृष्टि की प्रतिक्रिया में जन्मी थी, 

Additional Information 
 
अन्य विकल्प -

  • 'पोस्ट मॉडर्निज़्म' का 
    • ​यह 20वीं सदी के उत्तरार्ध में उभरा एक साहित्यिक और सांस्कृतिक आंदोलन है,
    • जबकि 'द न्यू क्रिटिसिज्म' का बोलबाला 1960 के दशक तक था। इसलिए, दोनों के समय और दृष्टिकोण में भिन्नता है।
  • 'स्टोरी राइटिंग' का -
    • ​स्टोरी राइटिंग साहित्यिक रचना की विधा है न कि आलोचनात्मक प्रविधि। यह नई आलोचना की विधि को प्रदर्शित नहीं करता।
  • 'नॉबेल राइटिंग' का - 
    • ​यह नोबेल पुरस्कार विजेताओं द्वारा लिखित साहित्य को संदर्भित करता है, जो नई आलोचना की प्रविधि के रूप में उपयुक्त नहीं है।

Comprehension:

निम्नलिखित अपठित गद्यांश के आधार पर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिए: (प्रश्न संख्या 94 से 99 तक)
नई आलोचना (New Criticism) बीसवीं सदी के मध्यवर्ती दशकों में अमेरिकी साहित्यिक आलोचना के क्षेत्र में कृति के रूपवादी अनुशीलन का एक आन्दोलन था, जिसने अपना यह नाम सन् 1941 ई. में प्रकाशित जॉन क्रोरेंसम की पुस्तक - 'द न्यू क्रिटिसिज्म' से ग्रहण किया था। अमेरिकी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में सन् 1960 ई. के दशक के अन्त तक इस साहित्यिक प्रविधि का बहुत बोलबाला था। 'नई आलोचना' उन्नीसवीं सदी की उस पुरानी आलोचना-दृष्टि की प्रतिक्रिया में जन्मी थी, जिसमें कृति पर विचार करते समय कृति के ऐतिहासिक सन्दर्भ, दार्शनिक आधार, रचनाकार के जीवनवृत्त, उसके घोषित उद्देश्यों, साहित्य के सन्दर्भ-स्रोतों और कृति में निहित राजनीतिक एवं सामाजिक अभिप्रायों को ही सर्वोपरि माना जाता था । इसके विपरीत नई आलोचना का जोर इस बात पर था कि साहित्यिक कृतियाँ अपनी संरचना में पूर्णतया आत्मनिर्भर होती हैं और वे अपनी एक निरपेक्ष और स्वायत्त सौन्दर्यपरक सत्ता निर्मित करती हैं। साहित्यिक व्याख्याओं का सरोकार कृति की बाह्य परिस्थितियों से या लेखक के घोषित मंतव्य, उद्देश्य और सरोकार या पाठक पर पड़ने वाले उस कृति के प्रभाव से नहीं है। नई आलोचना 'टेक्स्ट' या पाठ को आधार मानते हुए कृति के सूक्ष्म और विस्तृत भाषिक विश्लेषण को 'क्लोज रीडिंग' को महत्त्व देती थी। उसका सरोकार पाठ में अन्तर्निहित विभिन्न प्रकार के उन सम्बन्ध सूत्रों से था, जो किसी कृति को उसका अपना एक विशिष्ट चरित्र प्रदान करते हैं या उसकी एक खास संरचना का गठन करते हैं।

'नई आलोचना' का जन्म हुआ था

  1. समय की माँग के कारण
  2. साहित्यिक आवश्यकता के कारण
  3. आलोचना-कार्य में सुविधा के कारण
  4. पुरानी आलोचना-दृष्टि की प्रतिक्रिया में

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : पुरानी आलोचना-दृष्टि की प्रतिक्रिया में

गद्यांश Question 12 Detailed Solution

Download Solution PDF

'नई आलोचना' का जन्म हुआ था - पुरानी आलोचना-दृष्टि की प्रतिक्रिया में

Key Points

  • गद्यांश के आधार-
    • 'नई आलोचना' उन्नीसवीं सदी की उस पुरानी आलोचना-दृष्टि की प्रतिक्रिया में जन्मी थी,
    • जिसमें कृति पर विचार करते समय कृति के ऐतिहासिक सन्दर्भ, दार्शनिक आधार, रचनाकार के जीवनवृत्त,
    • उसके घोषित उद्देश्यों, साहित्य के सन्दर्भ-स्रोतों और कृति में निहित राजनीतिक एवं सामाजिक अभिप्रायों को ही सर्वोपरि माना जाता था।

Additional Information अन्य विकल्प -

  • समय की माँग के कारण: यह विकल्प समय की परिवर्तनशील आवश्यकताओं के कारण नई आलोचना के उदय का सुझाव देता है।
  • साहित्यिक आवश्यकता के कारण: यह विकल्प साहित्यिक जगत की तत्काल आवश्यकताओं के कारण नई आलोचना के उद्भव का सुझाव देता है।
  • आलोचना-कार्य में सुविधा के कारण: यह विकल्प आलोचना के कार्य में सुविधा और सहेजने के कारण नई आलोचना के उदय का सुझाव देता है।

Comprehension:

निम्नलिखित अपठित गद्यांश के आधार पर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिए: (प्रश्न संख्या 94 से 99 तक)
नई आलोचना (New Criticism) बीसवीं सदी के मध्यवर्ती दशकों में अमेरिकी साहित्यिक आलोचना के क्षेत्र में कृति के रूपवादी अनुशीलन का एक आन्दोलन था, जिसने अपना यह नाम सन् 1941 ई. में प्रकाशित जॉन क्रोरेंसम की पुस्तक - 'द न्यू क्रिटिसिज्म' से ग्रहण किया था। अमेरिकी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में सन् 1960 ई. के दशक के अन्त तक इस साहित्यिक प्रविधि का बहुत बोलबाला था। 'नई आलोचना' उन्नीसवीं सदी की उस पुरानी आलोचना-दृष्टि की प्रतिक्रिया में जन्मी थी, जिसमें कृति पर विचार करते समय कृति के ऐतिहासिक सन्दर्भ, दार्शनिक आधार, रचनाकार के जीवनवृत्त, उसके घोषित उद्देश्यों, साहित्य के सन्दर्भ-स्रोतों और कृति में निहित राजनीतिक एवं सामाजिक अभिप्रायों को ही सर्वोपरि माना जाता था । इसके विपरीत नई आलोचना का जोर इस बात पर था कि साहित्यिक कृतियाँ अपनी संरचना में पूर्णतया आत्मनिर्भर होती हैं और वे अपनी एक निरपेक्ष और स्वायत्त सौन्दर्यपरक सत्ता निर्मित करती हैं। साहित्यिक व्याख्याओं का सरोकार कृति की बाह्य परिस्थितियों से या लेखक के घोषित मंतव्य, उद्देश्य और सरोकार या पाठक पर पड़ने वाले उस कृति के प्रभाव से नहीं है। नई आलोचना 'टेक्स्ट' या पाठ को आधार मानते हुए कृति के सूक्ष्म और विस्तृत भाषिक विश्लेषण को 'क्लोज रीडिंग' को महत्त्व देती थी। उसका सरोकार पाठ में अन्तर्निहित विभिन्न प्रकार के उन सम्बन्ध सूत्रों से था, जो किसी कृति को उसका अपना एक विशिष्ट चरित्र प्रदान करते हैं या उसकी एक खास संरचना का गठन करते हैं।

'नई आलोचना' इनमें से किसको आधार मानती है ?

  1. मानव' को
  2. 'प्रकृति' को
  3. संवाद' को
  4. 'टेक्स्ट' को या पाठ को

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : 'टेक्स्ट' को या पाठ को

गद्यांश Question 13 Detailed Solution

Download Solution PDF

'नई आलोचना' इनमें से 'टेक्स्ट' को या पाठ को आधार मानती है 

Key Points

  • गद्यांश के आधार-
    • साहित्यिक व्याख्याओं का सरोकार कृति की बाह्य परिस्थितियों से या लेखक के घोषित मंतव्य,
    • उद्देश्य और सरोकार या पाठक पर पड़ने वाले उस कृति के प्रभाव से नहीं है।
    • नई आलोचना 'टेक्स्ट' या पाठ को आधार मानते हुए कृति के सूक्ष्म और विस्तृत भाषिक विश्लेषण को 'क्लोज रीडिंग' को महत्त्व देती थी।
    • उसका सरोकार पाठ में अन्तर्निहित विभिन्न प्रकार के उन सम्बन्ध सूत्रों से था, 

Additional Information 
 
अन्य विकल्प -

  • मानव: यह विकल्प साहित्यिक कृतियों को मानव जीवन, समाज और व्यक्तित्व के संदर्भ में व्याख्यायित करने का निर्देश देता।
  • प्रकृति: यह विकल्प साहित्यिक कृतियों को प्रकृति के संबंध में मूल्यांकित करने का निर्देश देता।
  • संवाद: यह विकल्प साहित्यिक कृतियों के संवाद या वार्तालाप की महत्वपूर्णता पर जोर देता।

Comprehension:

निम्नलिखित अपठित गद्यांश के आधार पर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिए: (प्रश्न संख्या 94 से 99 तक)
नई आलोचना (New Criticism) बीसवीं सदी के मध्यवर्ती दशकों में अमेरिकी साहित्यिक आलोचना के क्षेत्र में कृति के रूपवादी अनुशीलन का एक आन्दोलन था, जिसने अपना यह नाम सन् 1941 ई. में प्रकाशित जॉन क्रोरेंसम की पुस्तक - 'द न्यू क्रिटिसिज्म' से ग्रहण किया था। अमेरिकी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में सन् 1960 ई. के दशक के अन्त तक इस साहित्यिक प्रविधि का बहुत बोलबाला था। 'नई आलोचना' उन्नीसवीं सदी की उस पुरानी आलोचना-दृष्टि की प्रतिक्रिया में जन्मी थी, जिसमें कृति पर विचार करते समय कृति के ऐतिहासिक सन्दर्भ, दार्शनिक आधार, रचनाकार के जीवनवृत्त, उसके घोषित उद्देश्यों, साहित्य के सन्दर्भ-स्रोतों और कृति में निहित राजनीतिक एवं सामाजिक अभिप्रायों को ही सर्वोपरि माना जाता था । इसके विपरीत नई आलोचना का जोर इस बात पर था कि साहित्यिक कृतियाँ अपनी संरचना में पूर्णतया आत्मनिर्भर होती हैं और वे अपनी एक निरपेक्ष और स्वायत्त सौन्दर्यपरक सत्ता निर्मित करती हैं। साहित्यिक व्याख्याओं का सरोकार कृति की बाह्य परिस्थितियों से या लेखक के घोषित मंतव्य, उद्देश्य और सरोकार या पाठक पर पड़ने वाले उस कृति के प्रभाव से नहीं है। नई आलोचना 'टेक्स्ट' या पाठ को आधार मानते हुए कृति के सूक्ष्म और विस्तृत भाषिक विश्लेषण को 'क्लोज रीडिंग' को महत्त्व देती थी। उसका सरोकार पाठ में अन्तर्निहित विभिन्न प्रकार के उन सम्बन्ध सूत्रों से था, जो किसी कृति को उसका अपना एक विशिष्ट चरित्र प्रदान करते हैं या उसकी एक खास संरचना का गठन करते हैं।

नई आलोचना' का जोर इनमें से किस बात पर अधिक था ?

  1. लेखन की प्रतिबद्धता पर
  2. संरचना की आत्मनिर्भरता पर
  3. अनुमान पर
  4. समानता पर

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : संरचना की आत्मनिर्भरता पर

गद्यांश Question 14 Detailed Solution

Download Solution PDF

नई आलोचना' का जोर इनमें से संरचना की आत्मनिर्भरता पर अधिक था

Key Points

  • गद्यांश के आधार-
    • इसके विपरीत नई आलोचना का जोर इस बात पर था
    • कि साहित्यिक कृतियाँ अपनी संरचना में पूर्णतया आत्मनिर्भर होती हैं
    • और वे अपनी एक निरपेक्ष और स्वायत्त सौन्दर्यपरक सत्ता निर्मित करती हैं।
    • साहित्यिक व्याख्याओं का सरोकार कृति की बाह्य परिस्थितियों से या लेखक के घोषित मंतव्य,
    • उद्देश्य और सरोकार या पाठक पर पड़ने वाले उस कृति के प्रभाव से नहीं है।
    • नई आलोचना 'टेक्स्ट' या पाठ को आधार मानते हुए कृति के सूक्ष्म और विस्तृत भाषिक विश्लेषण को 'क्लोज रीडिंग' को महत्त्व देती थी।

Additional Information अन्य विकल्प -

  • लेखन की प्रतिबद्धता:
    • यह दृष्टिकोण साहित्यिक कृतियों को उनके समाजिक, राजनीतिक या नैतिक प्रतिबद्धताओं के संदर्भ में मूल्यांकित करता है।
    • यह लेखक के इरादों और उद्देश्यों पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • अनुमान:
    • यह साहित्यिक कृति की व्याख्या या मूल्यांकन के दौरान संभावित अर्थों और पाठक की व्यक्तिगत धारणाओं का विचार करता है।
  • समानता:
    • यह दृष्टिकोण साहित्यिक कृतियों के बीच तुलनात्मक अध्ययन, समानताओं और भिन्नताओं का आकलन करता है।

Comprehension:

निम्नलिखित अपठित गद्यांश के आधार पर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिए: (प्रश्न संख्या 94 से 99 तक)
नई आलोचना (New Criticism) बीसवीं सदी के मध्यवर्ती दशकों में अमेरिकी साहित्यिक आलोचना के क्षेत्र में कृति के रूपवादी अनुशीलन का एक आन्दोलन था, जिसने अपना यह नाम सन् 1941 ई. में प्रकाशित जॉन क्रोरेंसम की पुस्तक - 'द न्यू क्रिटिसिज्म' से ग्रहण किया था। अमेरिकी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में सन् 1960 ई. के दशक के अन्त तक इस साहित्यिक प्रविधि का बहुत बोलबाला था। 'नई आलोचना' उन्नीसवीं सदी की उस पुरानी आलोचना-दृष्टि की प्रतिक्रिया में जन्मी थी, जिसमें कृति पर विचार करते समय कृति के ऐतिहासिक सन्दर्भ, दार्शनिक आधार, रचनाकार के जीवनवृत्त, उसके घोषित उद्देश्यों, साहित्य के सन्दर्भ-स्रोतों और कृति में निहित राजनीतिक एवं सामाजिक अभिप्रायों को ही सर्वोपरि माना जाता था । इसके विपरीत नई आलोचना का जोर इस बात पर था कि साहित्यिक कृतियाँ अपनी संरचना में पूर्णतया आत्मनिर्भर होती हैं और वे अपनी एक निरपेक्ष और स्वायत्त सौन्दर्यपरक सत्ता निर्मित करती हैं। साहित्यिक व्याख्याओं का सरोकार कृति की बाह्य परिस्थितियों से या लेखक के घोषित मंतव्य, उद्देश्य और सरोकार या पाठक पर पड़ने वाले उस कृति के प्रभाव से नहीं है। नई आलोचना 'टेक्स्ट' या पाठ को आधार मानते हुए कृति के सूक्ष्म और विस्तृत भाषिक विश्लेषण को 'क्लोज रीडिंग' को महत्त्व देती थी। उसका सरोकार पाठ में अन्तर्निहित विभिन्न प्रकार के उन सम्बन्ध सूत्रों से था, जो किसी कृति को उसका अपना एक विशिष्ट चरित्र प्रदान करते हैं या उसकी एक खास संरचना का गठन करते हैं।

'द न्यू क्रिटिसिज्म' नामक पुस्तक के लेखक हैं

  1. निकोलाई ग्राविलोविच चेर्नीशेटस्की
  2. पॉल एंथोनी सैम्युलसन
  3. जॉन क्रोरेंसम
  4. पॉल डेमान

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : जॉन क्रोरेंसम

गद्यांश Question 15 Detailed Solution

Download Solution PDF

'द न्यू क्रिटिसिज्म' नामक पुस्तक के लेखक हैं- जॉन क्रोरेंसम

Key Points

  • गद्यांश के आधार-
    • नई आलोचना (New Criticism) बीसवीं सदी के मध्यवर्ती दशकों में अमेरिकी
    • साहित्यिक आलोचना के क्षेत्र में कृति के रूपवादी अनुशीलन का एक आन्दोलन था,
    • जिसने अपना यह नाम सन् 1941 ई. में प्रकाशित जॉन क्रोरेंसम की पुस्तक - 'द न्यू क्रिटिसिज्म' से ग्रहण किया था।
    • अमेरिकी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में सन् 1960 ई. के दशक के अन्त तक इस साहित्यिक प्रविधि का बहुत बोलबाला था।

Additional Informationअन्य विकल्प -

  • निकोलाई ग्राविलोविच चेर्नीशेटस्की:
    • यह यूक्रेन मूल के रूसी साहित्यकार थे, जिन्होंने कहानी, लघु उपन्यास और नाटक आदि विधाओं में प्रमुख लेखन किया है।
    • वे अपने युग की सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं पर आधारित साहित्य के लिए जाने जाते हैं।
    • उनकी सबसे प्रसिद्ध कृति "What Is to Be Done?" है, जो समाजवादी और राजनीतिक दृष्टिकोण से युक्त एक उपन्यास है।
  • पॉल एंथोनी सैम्युलसन:
    • पॉल एंथोनी सैम्युलसन एक प्रसिद्ध अमेरिकी अर्थशास्त्री थे।
    • उन्होंने आधुनिक अर्थशास्त्र के सिद्धांतों को सरल और समझने योग्य तरीके से प्रस्तुत किया
    • और इसके लिए उन्हें 1970 में अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
    • उनकी प्रसिद्ध पुस्तक "Economics: An Introductory Analysis" (पहले संस्करण में "Economics") है।
  • पॉल डेमान:
    • पॉल डेमान बेल्जियन मूल के अमेरिकी साहित्यिक समीक्षक और सिद्धांतकार थे।
    • वे मुख्य रूप से साहित्यिक सिद्धांत, विशेष रूप से विखंडनवाद (Deconstruction) के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए जाने जाते हैं।
    • उनकी प्रमुख पुस्तकों में "Blindness and Insight" और "Allegories of Reading" शामिल हैं।

Hot Links: all teen patti teen patti master 2023 teen patti real cash withdrawal